उत्तराखण्ड
कौन पार्टी देंगी मुस्लिमों को प्रतिनिधित्व
- आबादी के अनुपात में कब मिलेगी हिस्सेदारी?
- बसपा-उवैसी व आप के आगमन से वोट बिखरने का खतरा बढा़
- हितैषी होने का दम भरने वाली कांग्रेस क्या बढ़ाएगी प्रतिनिधित्व
देहरादून। उत्तराखण्ड में होने वाले आम विधानसभा चुनाव को लेकर सभी पार्टियों ने सत्ता हासिल करने की बिसात बिझानी शुरू कर दी है। सीट वार चुनावी गणित अपने पक्ष में करने को ठाकुर-ब्राह्मण, कुमाऊं-गढ़वाल, मैदान-तराई, उत्तराखण्ड के मिथक, परंपराएं व नई पार्टियों के पदार्पण को दृष्टिगत रखते हुए समीकरण बनाए जा रहें है। 2017 के चुनाव में हार का कारण बने नेताओं को साधने के लिये लोकलुभावन वादे किये जा रहें है। इस सबके बीच एक सवाल मुंह बाये खड़ा है कि मुस्लिम समाज को उत्तराखण्ड में उनकी आबादी के अनुपात में विधानसभा के अंदर हिस्सेदारी कब मिलेगी।
उत्तराखंड एक पर्वतीय राज्य होने के साथ-साथ भौगोलिक मानचित्र पर भी एक अलग पहचान रखता है। प्रदेश की कुल आबादी 10,086,292 ( 2011 जनगणना के आधार पर) है, जो दशकीय विद्व दर के आधार पर 2021 में बढ़कर 11,700,099 होने का अनुमान है। धार्मिक आधार पर देखा जाए तो प्रदेश में 82.97 प्रतिशत हिन्दू, 13.95 फीसदी मुस्लिम, 0.37 ईसाई, 2.34 सिख, 0.15 बौद्ध, 0.09 प्रतिशत जैन और 0.12 फीसदी अघोषित व 0.01 प्रतिशत अन्य निवासरत हैं। इसी आंकडे़ को जाति के आधार पर देखा जाए तो यहां 35 प्रतिशत ठाकुर, 24 फीसदी ब्राह्मण, 19 प्रतिशत एससी, 14 फीसदी
अल्पसंख्यक व एसटी 3 प्रतिशत है। प्रदेश में एससी के लिये 13 व एसटी के लिये 13 सीटे आरक्षित की गई है। प्रदेश की 13.95 फीसदी मुस्लिम आबादी को अभी तक विधानसभा में उनकी आबादी के अनुपात में प्रतिनिधित्व नही मिल पाया है। टिकट देने के मामले में भी राजनैतिक दल कंजूसी ही करते रहें है। बसपा को छोड़ कर कोई भी दल मुस्लिमों को उनकी आबादी के हिसाब से टिकट नही दे सका है। बसपा ने तो 2009 व 2014 में हरिद्वार से लोकसभा प्रत्यिाशी भी उतारा है, मगर मुस्लिमों की हितैषी होने का दम भरने वाली कांग्रेस ने प्रतिनिधित्व बढ़ाने पर कभी जोर नही दिया। हालांकि प्रदेश में अल्पसंख्यक समुदाय को कांग्रेस समर्थक माना जाता रहा है। हाल के दिनों में भाजपा सहित दूसरी पार्टियों की तरफ भी मुस्लिमों का रूझान बढ़ा है, बसपा और अब आम आदमी पार्टी व आईएमआईएम के आगमन से इस समुदाय के वोट 2022 में बिखरने का खतरा बढ़ गया है। प्रदेश में अल्पसंख्यकों को आबादी के अनुपात में टिकट देने की मांग भी जोर पकड़ने लगी है। कहा जा रहा है कि जो भी पार्टी 2022 के विधानसभा चुनाव में अल्पसंख्यकों को अधिक टिकट देंगी, उसी पार्टी को सपोर्ट करने पर विचार किया जाएगा।