कांग्रेस में संसदीय बोर्ड की वापसी खोलेगी सामूहिक नेतृत्व का द्वार
पार्टी की चिंतन बैठक में हो सकता है फैसला
नई दिल्ली। कांग्रेस को राजनीतिक चुनौतियों के दौर से निकालने की कोशिश के तहत पार्टी की निर्णय प्रक्रिया के दायरे को बढ़ाने का उदयपुर चिंतन शिविर में अहम फैसला होने की संभावना है। इसके तहत पार्टी में संसदीय बोर्ड के गठन की प्रणाली को फिर से वापस लाने की लगभग पूरी तैयारी है। कांग्रेस में सामूहिक नेतृत्व की उठाई जा रही आवाजों के बीच संसदीय बोर्ड का गठन इस दिशा में पहला बड़ा अहम कदम होगा।
संकेत इस बात के भी हैं कि वंशवादी राजनीति के आरोपों से पीछा छुड़ाने के लिए अपवादों को छोड़कर पार्टी एक परिवार, एक टिकट का सैद्धांतिक फैसला भी ले सकती है। इसी तरह कांग्रेस के संकुचित हुए सामाजिक आधार को विस्तार देने के लिए ओबीसी, दलित, आदिवासी और महिलाओं को पार्टी संगठन के ढांचे में 50 प्रतिशत तक भागीदारी सुनिश्चित करने का निर्णय लिया जा सकता है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान कांग्रेस की बार-बार हो रही चुनावी हार के बाद पार्टी संगठन और नेतृत्व की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए सामूहिक नेतृत्व की मांग की जा रही है।
मालूम हो कि कांग्रेस के असंतुष्ट खेमे जी-23 ने सबसे पहले अगस्त, 2020 में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को लिखे अपने चर्चित पत्र में संगठनात्मक बदलाव को लेकर जो प्रमुख मांग उठाई थी, उसमें संसदीय बोर्ड के गठन का प्रस्ताव भी शामिल था।
इन नेताओं ने हाईकमान केंद्रित फैसलों को पार्टी की मौजूदा कमजोर राजनीतिक हालत के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए कहा था कि संसदीय बोर्ड का गठन किया जाना चाहिए ताकि बड़े राजनीतिक मुद्दों पर इसमें चर्चा कर फैसले लिए जा सकें। असंतुष्ट खेमे का हिस्सा नहीं होने के बावजूद पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम सरीखे कुछ नेताओं ने भी दिसंबर, 2020 में हुई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में संसदीय बोर्ड के साथ स्वतंत्र केंद्रीय चुनाव प्राधिकरण का गठन किए जाने की बात उठाई थी।
चिंतन बैठक के लिए कांग्रेस के संगठनात्मक ढांचे में सुधारों को लेकर गठित उप-समूह ने संसदीय बोर्ड प्रणाली की वापसी समेत कई सुझावों का मसौदा तैयार किया है। सूत्रों के अनुसार, उदयपुर चिंतन बैठक में संसदीय बोर्ड के गठन के इस प्रस्ताव पर मुहर लगाए जाने की पुख्ता संभावना है।