विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत के लिए हेपेटाइटिस पर जताई चिंता
भारत में करीब 2,50,000 लोग वायरल हेपेटाइटिस से मरते है हर साल
देहरादून। नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ बारूक एस- ब्लमबर्ग के सम्मान में 28 जुलाई के दिन को मनाया जाता है। अमेरिकी वैज्ञानिक के हेपेटाइटिस बी पर रिसर्च में योगदान को नहीं भुलाया जा सकता। 28 जुलाई, 1925 को जन्मे नोबेल पुरस्कार विजेता ने हेपेटाइटिस बी वायरस की खोज की थी और बाद में परीक्षण टेस्ट और उसका इलाज के लिए वैक्सीन को भी विकसित किया। विश्व हेपेटाइटिस डे को वैश्विक मान्यता मई 2010 के 63वें वर्ल्ड हेल्थ एसेंबली में मिली। विश्व में कई ऐसे रोग हैं जिनसे हर साल लाखों करोड़ों लोग प्रभावित होते हैं। समय रहते ज्यादातर लोगों को इनकी पहचान करने में बहुत देर हो जाती है। इनमें हेपेटाइटिस भी ऐसा ही एक रोग है जो लिवर टिश्यू में सूजन का कारण बनता है और दुनिया भर में लाखों लोगों की जिंदगी को हर साल प्रभावित करता है।
कई लोगों को संक्रमण की जानकारी नहीं होने के कारण विश्व हेपेटाइटिस डे हर साल 28 जुलाई को मनाया जाता है। इसका खास मकसद वायरल हेपेटाइटिस के बारे में जागरुकता बढ़ाना है। लोगों को पूरी दुनिया में विश्व हेपेटाइटिस दिवस पर इस गंभीर रोग के बारे में जानकारी दी जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत के लिए हेपेटाइटिस को प्रमुख स्वास्थ्य चिंता के तौर पर पहचान की है।
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, 2020 में करीब चार करोड़ लोग हेपेटाइटिस बी से और 60 लाख से 1-2 करोड़ हेपेटाइटिस सी से संक्रमित थे। इंडियन जर्नल अंक मेडिकल रिसर्च के मुताबिक, भारत में करीब 2,50,000 लोग वायरल हेपेटाइटिस या उसकी अगली कड़ी से हर साल मर जाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की तरफ से किए गए एक रिसर्च में अनुमान लगाया गया है कि 4-5 मिलियन समय से पहले मौत को निम्न और मध्यम आय वाले देशों में 2030 तक टीकाकरण, जांच, दवा और जागरुकता अभियान के जरिए रोका जा सकता है। हेपेटाइटिस होने पर लापरवाही जानलेवा हो सकती है।
पांच प्रकार के होते हैं हेपेटाइटिस
हेपेटाइटिस ए, बी, सी, डी और ई होता है।
हेपेटाइटिस ए और ई दूषित पानी और भोजन के कारण होता है।
वहीं हेपेटाइटिस बी, सी और डी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से होते हैं।
हेपेटाइटिस ए और ई अपेक्षाकृत कम खतरनाक होते हैं।
हेपेटाइटिस बी, सी और डी लिवर को नुकसान पहुंचाते हैं।
क्या हैं हेपेटाइटिस के मुख्य कारण
हेपेटाइटिस संक्रामक बीमारियों का समूह है जो उसके कई वेरिएन्ट्स जैसे ए, बी, सी, डी और ई के नामों से जाना जाता है। हेपेटाइटिस आम तौर पर वायरल संक्रमण के कारण होता है, लेकिन उसके अलावा भी कई जोखिम फैक्टर जैसे अत्यधिक अल्कोहल का सेवन, टॉक्सिन, कुछ दवा और खास मेडिकल स्थितियां हैं। हेपेटाइटिस ए और ई आम तौर से दूषित भोजन और पानी के सेवन की वजह से होता है। हेपेटाइटिस बी, सी और डी का कारण संक्रमित ब्लड और शरीर के तरल पदार्थों के संपर्क में आना है। हेपेटाइटिस डी उन लोगों को प्रभावित करता है जो पहले ही हेपेटाइटिस बी से प्रभावित हैं। उसके अलावा, हेपेटाइटिस फैलने का कारण मां से बच्चे में वायरस का ट्रांसमिशन, असुरक्षित यौन संबंध, असुरक्षित सुइयों का इस्तेमाल भी है।
समय पर इलाज न कराने पर लिवर को खतरा
समय पर नहीं संभले तो हेपेटाइटिस-बी का वायरस लीवर को खराब कर मरीज की जान ले सकता है। यह रक्त के संक्रमण, बार-बार एक सुई के प्रयोग, डायलिसिस कराने वाले मरीजों व असुरक्षित यौन संबंध से हो सकता है। इससे बचने के लिए समय पर बीमारी की पहचान व उपचार जरूरी है। इसमें लापरवाही व अज्ञानता अधिक घातक है। राहत की बात है कि इसकी जांच और दवाएं देशभर में निशुल्क हैं। यदि व्यक्ति समय पर जांच करवाए और उपचार ले तो उसे बचाया जा सकता है। नेशनल वायरल हेपेटाइटिस कंट्रोल प्रोग्राम 2018 के तहत हेपेटाइटिस बी के मरीजों को देशभर में निशुल्क जांच व उपचार की सुविधा मिलती है। हेपेटाइटिस की जांच के लिए लिवर फंक्सन टैस्ट, एंटीजन और एंटीबॉडीज टैस्ट कराते हैं ताकि पता चल सके कि कौन सा वायरस है और कितना एक्टिव है। इससे बचाव के लिए तीन टीके लगते हैं। पहले टीके के बाद अगला टीका 30वें और फिर 180वें दिन लगता है। हार्ट व बीपी के मरीज और गर्भवती महिलाओं को भी टीके लगवाना जरूरी होता है। शिशुओं को जन्म के समय ही टीके लगाए जाते हैं।