उत्तराखण्डदेहरादून

आखिरकार वन विभाग के चीफ की लड़ाई जीतने में कामयाब हुए IFS राजीव भरतरी, हाईकोर्ट के सरकार को नियुक्ति का आदेश देने के बाद फिर संभाला उत्तराखण्ड पीसीसीएफ चीफ का चार्ज 

देहरादून। उत्तराखंड वन विभाग  के चीफ  के तौर पर राजीव भरतरी को फिर से चार्ज मिल गया है। हाईकोर्ट ने सुबह 10 बजे राजीव भरतरी को सरकार से चार्ज दिलवाने के निर्देश दिए थे। खास बात यह है कि राजीव भरतरी वन मुख्यालय में पहुंच चुके थे। लेकिन तब तक शासन की तरफ से चार्ज  को लेकर कोई आदेश नहीं दिया गया था। उत्तराखंड में धामी सरकार को हाईकोर्ट ने बड़ा झटका देते हुए राजीव भरतरी को मंगलवार सुबह 10 बजे चार्ज दिलवाने के निर्देश दिए थे।खास बात यह है कि राजीव भरतरी निर्धारित समय पर वन मुख्यालय में पहुंच चुके थे और आदेश का इंतजार किया। आखिरकार शासन का आदेश पहुंचने के 3 घंटे बाद राजीव भरतरी ने वन मुखिया के रूप में ज्वाइनिंग ली। राजीव भरतरी की ज्वाइनिंग से पहले ऐसी चर्चा थी कि सरकार इस मामले में हाईकोर्ट के निर्देश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटा सकती है। हालांकि हाईकोर्ट के निर्देशों का पालन करवाने के लिए सरकार बाध्यकारी थी। मंगलवार सुबह 10 बजे राजीव भरतरी वन मुख्यालय में पहुंच गए थे। उसके बाद से ही वह अपने कार्यभार संभालने के आदेश का इंतजार करते रहे । सरकारी छुट्टी होने के कारण वन मुख्यालय में कम कर्मचारी आए।
लेकिन कोर्ट के आदेशों के चलते राजीव भरतरी वन मुख्यालय में अपना चार्ज लेने के लिए पहुंचे थे।  बहरहाल करीब चार घंटे के बाद दोपहर 1 बजे राजीव भरतरी ने उत्तराखंड के प्रमुख मुख्य वन संरक्षक के पद पर ज्वाइन कर लिया ।

हाईकोर्ट नैनीताल ने  दिया भरतरी के पक्ष में  फैसला
देहरादून। उत्तराखंड में वन महकमे के मुखिया पद को लेकर आईएफएस अफसर राजीव भरतरी ने जो न्यायिक लड़ाई लड़ी, उस पर उन्हें कामयाबी मिल गई । लेकिन राजीव भरतरी के लिए यह लड़ाई इतनी आसान नहीं थी, क्योंकि उन्होंने अपने रिटायरमेंट से ठीक पहले सरकार को चुनौती दी थी। उत्तराखंड में वन विभागाध्यक्ष के लिए पिछले लंबे समय से चल रही लड़ाई और इस पर हुए ऐतिहासिक फैसले से पहले कई उतार-चढ़ाव आए।
नैनीताल हाईकोर्ट ने वन विभाग के हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्सेस पद के लिए ऐतिहासिक फैसला देते हुए धामी सरकार को जो निर्देश दिए हैं वो भविष्य में भी सरकारों के लिए एक बड़ी नजीर होगा। आईएफएस अफसर राजीव भरतरी के लिए सरकार के खिलाफ जाकर अपने रिटायरमेंट से पहले यह लड़ाई लड़ना आसान नहीं था। हालांकि यह पूरा मामला पिछली भाजपा सरकार के समय से शुरू हुआ था, जब राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने कॉर्बेट नेशनल पार्क में हो रहे निर्माण को अवैध पाया और यहां अवैध रूप से पेड़ों के काटे जाने की शिकायत का संज्ञान लिया।
इसके बाद कॉर्बेट नेशनल पार्क में हो रहे अवैध कामों को लेकर जांच बैठा दी गई। खास बात ये है कि इसी मामले में एक पीआईएल भी लगाई गई, जिसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा। खास बात यह है कि नैनीताल हाईकोर्ट ने भी इस मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए सरकार से इस पूरे मामले पर रिपोर्ट ली। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की तरफ से मामले में सरकार की तरफ से की गई कार्रवाई की जानकारी मांगी गई तो सरकार ने भी आनन-फानन में अधिकारियों के तबादले से लेकर निलंबन तक की कार्रवाई शुरू कर दी।
बता दें कि नवंबर 2021 में ही इस मामले पर सरकार सक्रिय हुई और कॉर्बेट में तत्कालीन डीएफओ से लेकर रेंजर तक पर निलंबन की कार्रवाई की गई। यही नहीं, चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन रहे जेएस सुहाग को भी निलंबित कर दिया गया, जबकि 25 नवंबर 2021 को तत्कालीन वन मुखिया राजीव भरतरी का तबादला जैव विविधता बोर्ड में कर दिया गया। राजीव भरतरी के बदले विनोद कुमार सिंघल को हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्सेस  की जिम्मेदारी दे दी गई। सरकार के इसी फैसले के बाद राजीव भरतरी ने इसके खिलाफ मोर्चा खोल दिया।
दरअसल, 31 दिसंबर 2020 को अपनी सीनियरिटी के आधार पर आईएफएस अफसर राजीव भरतरी विभाग के अध्यक्ष यानी हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स बनाए गए थे लेकिन साल 2021 में कॉर्बेट नेशनल पार्क में अवैध निर्माण का मामला सामने आ गया और साल खत्म होते-होते नवंबर में राजीव भरतरी को इस पद से हटा दिया गया।

कैट ने सुनाया भरतरी के हक में  फैसला
इस मामले को लेकर राजीव भरतरी ने नैनीताल हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन हाईकोर्ट ने इस मामले में राजीव भरतरी को कैट यानी केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण में जाने के लिए कहा। अप्रैल 2022 में हाईकोर्ट ने यह मामला कैट में भेज दिया और इस मामले पर कैट को फौरन फैसला करने के लिए भी कहा। इसके बाद कैट में इस मामले की सुनवाई शुरू हो गई। 24 फरवरी 2023 को कैट ने बड़ा फैसला देते हुए राजीव भरतरी को वन विभाग के मुखिया के तौर पर सरकार को चार्ज देने के निर्देश  दिए।

पुनर्विचार याचिकाएं भी हुई  खारिज
उधर, केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण की तरफ से दिए गए निर्देशों पर राज्य सरकार ने पुनर्विचार याचिका लगाई। इसके अलावा PCCF विनोद सिंघल ने भी इस पर पुनर्विचार याचिका डाल दी। जिस पर 20 मार्च 2023 को निर्णय लेते हुए इन दोनों ही याचिकाओं को खारिज कर दिया गया। दूसरी तरफ भरतरी हाईकोर्ट गए और कैट के आदेश का पालन न होने को लेकर याचिका दायर की। 15 मार्च 2023 को हाईकोर्ट में कैट के आदेश का पालन नहीं होने को लेकर सुनवाई हुई, जिसमें हाईकोर्ट ने चीफ सेक्रेटरी, प्रमुख सचिव वन और विनोद सिंघल से इस पर 3 सप्ताह में जवाब मांगा और अगली तारीख 3 अप्रैल की भी लगा दी।  ठीक करीब एक साल बाद 3 अप्रैल 2023 को नैनीताल हाईकोर्ट ने इस मामले में राजीव भरतरी को 4 अप्रैल सुबह 10 बजे चार्ज देने के निर्देश सरकार को दे दिए।
यहां यह भी दिलचस्प है कि इस पूरे मामले के कोर्ट में चलने के दौरान ही एक तरफ राजीव भरतरी को चार्ज देने के निर्देश दिए गए तो दूसरी तरफ सरकार ने कॉर्बेट में अवैध कार्यों को लेकर राजीव भरतरी को 13 मार्च को ही चार्जशीट सौंप दी थी, जिसका जवाब राजीव भरतरी को लिखित रूप में देने को कहा गया।  1986 बैच के आईएफएस अफसर राजीव भरतरी 30 अप्रैल को रिटायर होने जा रहे हैं। इसी तरह 1987 बैच के विनोद कुमार सिंघल भी 30 अप्रैल को ही रिटायर हो रहे हैं।कॉर्बेट नेशनल पार्क में अवैध निर्माण को लेकर उस दौरान निदेशक रहे राहुल पर कोई भी कार्रवाई नहीं की गई है। राहुल को इस मामले के बाद वन मुख्यालय में अटैच कर दिया गया था और अभी भी वो वन मुख्यालय में ही अटैच हैं। उधर जिस मामले में राजीव भरतरी को आरोपी बनाया गया है उसको लेकर राजीव भरतरी ने कोर्ट में 20 पत्र संलग्न किए हैं, जिसमें उन्होंने इन अवैध कार्यों को रोकने के लिए निर्देश जारी किए थे और जिनका पालन नहीं किया गया।

कॉर्बेट पार्क में  क्या है निर्माण विवाद
वहीं, इसी बीच सुप्रीम कोर्ट में एक पीआईएल दायर की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की जांच के लिए एक सीईसी का गठन किया। कमेटी ने कॉर्बेट नेशनल पार्क में अवैध कार्यों के लिए तत्कालीन वन मंत्री हरक सिंह रावत को जिम्मेदार माना और इससे संबंधित अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में जमा भी की है। दरअसल कॉर्बेट नेशनल पार्क में करीब 6000 पेड़ अवैध रूप से काटे जाने की बात सामने आई थी। इसके अलावा यहां अवैध रूप से निर्माण करने का भी मामला सामने आया था। सबसे ज्यादा चैंकाने वाली बात ये है कि अवैध निर्माण की बात सामने आने के बाद कॉर्बेट के तत्कालीन निदेशक राहुल ने इस अवैध निर्माण को छुड़वाने के निर्देश दिए थे। जाहिर है कि इससे यह साफ हो गया कि निर्माण अवैध रूप से किया गया था।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button