राज्य आन्दोलन की नायिका सुशीला बलूनी पंचतत्व में विलीन, हरिद्वार में खड़खड़ी श्मशान घाट पर किया गया अंतिम संस्कार, पुत्रों ने दी मुखाग्नि, गार्ड ऑफ ऑनर का दिया गया सम्मान
देहरादून/ हरिद्वार। उत्तराखंड राज्य आंदोलन की नाईका व पूर्व महिला आयोग की अध्यक्षा सुशीला बलूनी का खड़खड़ी श्मशान घाट में पूर्ण सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। सुशीला बलूनी के पुत्रों ने उन्हें मुखाग्नि दी। उनकी अंतिम विदाई में विधायक, मंत्री सहित सैकड़ों लोग शामिल हुए। इस दौरान हर किसी की आंखें नम हो गई। नगर विधायक मदन कौशिक, हरिद्वार के एडीएम पीएल शाह, एसडीएम पूरन सिंह राणा, रविंद्र जुगरान समेत अनेक राज्य आंदोलनकारियों ने सुशीला बलूनी को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किए। सुशीला बलूनी को ‘गार्ड ऑफ ऑनर’ दिया गया।
उत्तराखंड राज्य अदोलनकारी एवं महिला आयोग की पूर्व अध्यक्षा सुशीला बलूनी का मंगलवार को देर शाम निधन हो गया था। 84 साल की सुशीला बलूनी लंबे समय से लिवर सिरोसिस बीमारी से जूझ रही थी। अचानक तबीयत खराब होने पर परिजनों ने बलूनी को मैक्स हॉस्पिटल में भर्ती कराया, लेकिन मंगलवार शाम करीब 5 बजे अस्पताल में ही उनका निधन हो गया। मूलरूप से सुशीला बलूनी उत्तरकाशी के बड़कोट की रहने वाली थी। राज्य आंदोलन के दौरान सुशीला बलूनी ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया । साथ ही वो महिला आंदोलनकारियों का आंदोलन के दौरान नेतृत्व भी करती थी। सुशीला बलूनी ना सिर्फ राज्य आंदोलनकारी रही बल्कि कई क्षेत्रों में भी उन्होंने अपनी किस्मत अजमाई। सुशीला बलूनी अधिवक्ता भी थीं। इसके साथ ही उन्होंने सभासद और विधानसभा चुनाव में भी अपनी किस्मत आजमाई। सुशीला बलूनी प्रदेश की महिलाओं के हितों के लिए किसी भी मंच पर बेबाकी से अपनी बात रखती थीं। साथ ही तमाम क्षेत्रों में लोगों को प्रेरणा भी देती थीं। सुशीला बलूनी को उनके व्यक्तित्व के चलते किसी सभी सरकारों में तवज्जो दी जाती थी। भाजपा सरकार के दौरान बलूनी को उत्तराखंड महिला आयोग के अध्यक्ष पद की भी जिम्मेदारी दी गई थी।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी सुबह बलूनी के डोभालवाला स्थिति आवास पर जाकर उनके पार्थिव शरीर पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी। मुख्यमंत्री ने कहा कि पृथक उत्तराखंड के निर्माण में सुशीला बलूनी के योगदान को सदैव याद रखा जाएगा। उनका जनसंघर्ष प्रेरणा बनेगा और योगदान हमेशा प्रदेश के लोगों को हमेशा याद रहेगा। इस अवसर पर कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी ने भी सुशीला बलूनी को श्रद्धांजलि दी।
संघर्ष भरा रहा सुशीला बलूनी का जीवन
देहरादून। सुशीला बलूनी पहली ऐसी महिला हैं जिन्होंने अगस्त 1994 को कलेक्ट्रेट ऑफिस में बेमियादी अनशन किया था। यही नहीं, सुशीला पर्वती गांधी इंद्रमणि बडोनी के नेतृत्व में गठित उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति के केंद्रीय संयोजक मंडल की सदस्य भी रही। इसके अलावा उत्तराखंड राज्य निर्माण में कई बार जेल जाने के साथ ही लाठीचार्ज के दौरान कई बार घायल भी हुई। पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा, सुशीला बलूनी के राजनीतिक गुरु थे। जिनसे ही प्रेरित होकर सुशीला बलूनी राजनीति में भी आई।
राज्य आंदोलन की लड़ाई लड़ने वाली पहली महिला थी सुशीला बलूनी
देहरादून। राज्य आंदोलनकारी सुशीला बलूनी प्रदेश की पहली ऐसी महिला थी जिन्होंने राज्य आंदोलन की लड़ाई लड़ी। सुशीला बलूनी ने अलग राज्य की मांग को लेकर अपने दो साथियों रामपाल और गोविंद राम ध्यानी के साथ मिलकर देहरादून के कचहरी स्थित शहीद स्मारक पर आंदोलन शुरू किया। कुल मिलाकर उत्तराखंड राज्य निर्माण में सुशीला बलूनी की एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यही नहीं, सुशीला बलूनी एक समाजसेवी के रूप में भी काम करती रही. अधिवक्ता रही बलूनी तमाम संगठनों में रहकर राज्य के विकास और जनता की सेवा के लिए लंबे समय तक काम किया।
विधानसभा और मेयर का भी लड़ा था चुनाव
देहरादून। सुशीला बलूनी साल 1989 में नगरपालिका के बोर्ड में सभासद के रूप में भी नामित की गई थी। इसके बाद सुशीला बलूनी ने पहली बार 1996 में निर्दलीय, विधानसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन जीत हासिल नहीं हुई। उत्तराखंड राज्य गठन के बाद साल 2002 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान सुशीला बलूनी ने क्षेत्रीय पार्टी उत्तराखंड क्रांति दल के टिकट पर विधानसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन इस चुनाव में भी बलूनी को सफलता नहीं मिली। इसके बाद साल 2003 में मेयर पद के लिए किस्मत आजमाई, लेकिन त्रिकोणीय समीकरण के चलते बलूनी को सफलता नहीं मिली। इसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूरी ने उन्हें भाजपा की सदस्यता दिलाई। लिहाजा, भाजपा सरकार में उत्तराखंड आंदोलनकारी सम्मान परिषद और उत्तराखंड राज्य महिला आयोग का अध्यक्ष बनाया गया।
लखनऊ से लेकर दिल्ली तक बलूनी के किया संघर्ष
देहरादून। सुशीला बलूनी मूलरूप से उत्तरकाशी के बड़कोट की रहने वाली थी।सुशीला बलूनी का विवाह नंदा दत्त बलूनी से हुआ। शुरुआती शिक्षा दीक्षा उन्होंने बड़कोट में ही ली थी। यही नहीं सुशीला बलूनी लंबे समय तक देहरादून बार एसोसिएशन की सदस्य भी रही। यही नहीं, उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान सुशीला बलूनी ने पूरे प्रदेश का भ्रमण करते हुए लखनऊ में लंबे समय तक संघर्ष किया था। सुशीला बलूनी सिर्फ लखनऊ तक ही सीमित नहीं रही, बल्कि उनका संघर्ष लखनऊ से दिल्ली तक पहुंच गया। इस दौरान सुशीला बलूनी महिलाओं के उत्थान को लेकर हमेशा ही अपनी आवाज बुलंद करती दिखाई दी।