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डेंगू को लेकर स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. विनीता शाह से एक्सक्लूसिव बातचीत, बोलीं, बुखार से ग्रसित हर मरीज  को डेंगू केस नहीं माना जा सकता, भयभीत होने की जरूरत नहीं, फीवर होने पर जांच कराएं, सावधानी बरतें, जागरूक रहें

जिन मरीजों  की एलाईजा रिपोर्ट पॉजिटिव, वे ही डेंगू रोगी 
डेंगू मरीजों के इलाज के लिए सरकारी अस्पतालों में सभी संभव चिकित्सा सुविधाएं मौजूद
एस.आलम अंसारी
देहरादून। उत्तराखंड की स्वास्थ्य महानिदेशक के रूप में डॅा.विनीता शाह ने इसी साल 1 जनवरी को कार्यभार संभाला था  । स्वास्थ्य क्षेत्र में लगभग 33 साल का लंबा अनुभव रखने वाली डॉ विनीता शाह मशहूर निश्चेतक हैं। उन्होंने 29 मई 1991 को स्वास्थ्य विभाग में अपनी सेवाएं शुरू की । मूल रूप से अल्मोड़ा निवासी डॉ विनीता शाह ने अपने गृह जनपद के अलावा उत्तरकाशी ,उधम सिंह नगर नैनीताल व देहरादून में एक निश्चेतक के रूप में सेवाएं प्रदान की। स्वास्थ्य महानिदेशालय में निदेशक के पद पर उन्होंने लगभग ढाई साल कार्य किया, इसके बाद इसी साल की शुरुआत में उन्होंने स्वास्थ्य विभाग के महानिदेशक के रूप में  अपनी पारी की शुरुआत की। स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ विनीता शाह से प्रदेश में डेंगू के हालात, व्यवस्थाओं और स्वास्थ्य विभाग के इंतेजामात को लेकर खास बातचीत की गई।
1-उत्तराखंड में इस समय डेंगू का प्रकोप चल रहा है। स्वास्थ्य विभाग ने समय रहते डेंगू की रोकथाम और नियंत्रण के लिए कितनी तैयारी की थी।
-स्वास्थ्य विभाग ने मई माह  से ही डेंगू की रोकथाम के लिए  तैयारियाँ चल रही हैं। समय-समय पर स्वास्थ्य सचिव व मेरे द्वारा पत्राचार और वीडियो काॅन्फ्रेंसिग के माध्यम से मुख्य चिकित्सा अधिकारियों को आवश्यक दिशा-निर्देश दिये जाते रहे हैं।
2-राजधानी होने के बावजूद देहरादून में डेंगू के केस सबसे ज्यादा हैं। 13 मौत भी अब तक डेंगू से यहाँ  हो चुकी हैं ,क्या कारण मानती हैं। जबकि यहां व्यवस्थाएं और प्रबंधन कहीं बेहतर होने चाहिए थें।
-देहरादून में डेंगू के सबसे ज्यादा केस आने का कारण देहरादून का वातावरण, घनी आबादी व इस वर्ष अत्यधिक वर्षा होना हो सकता है। देहरादून में सरकारी अस्पतालों व स्वास्थ्य इकाइयों में स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर स्थिति में हैं।
3-स्वास्थ्य सचिव लगातार ग्राउंड जीरो पर जाकर डेंगू की व्यवस्था देख रहे हैं। खामियों पर लगातार एक्शन भी ले रहे हैं ,वहीं विभाग की अध्यक्ष होने के बावजूद आपका मूवमेंट बेहद कम हो रहा है।
-ऐसा नहीं है, मेरे द्वारा सचिव स्वास्थय  के साथ चिकित्सालयों का निरीक्षण किया गया है। इसके अलावा  मेरे द्वारा सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र रायपुर, उप जिला चिकित्सालय, प्रेमनगर व जिला चिकित्सालय देहरादून का निरीक्षण समय-समय पर किया गया है।  समय के अभाव के कारण वीडियो काॅन्फ्रेंसिग के माध्यम से भी डेंगू की समीक्षा बैठक लेते हुये मुख्य चिकित्सा अधिकारियों को आवश्यक दिशा निर्देश जारी  किये गये हैं।
4-राजधानी में स्मार्ट सिटी के काम चलने के कारण सड़क खुदी पड़ी हैं, जगह-जगह गड्ढे हैं, पानी का जमाव हो रहा है, जिस कारण मच्छर पैदा हो रहे हैं ।इसे राजधानी में डेंगू के बढ़ने का कितना कारण माना जा सकता है ।
-स्मार्ट सिटी के कार्य व अन्य किसी भी कारणों से जहाँ भी गड्ढों में साफ-पानी इकटठा होता है, वहाँ डेंगू मच्छर के पनपने की सम्भावना बनी रहती है। घर के आसपास या कहीं भी साफ पानी इकट्ठा न होने दें।
5-पिछले साल डेंगू के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2337 कैसे सामने आए थे ,मगर इस साल 16 सितंबर तक ही 1500 का आंकड़ा पर हो गया है, इससे स्वास्थ्य विभाग की तैयारी पर सवालिया निशान लग रहा है।
-विभाग द्वारा डेंगू की रोकथाम के लिए  सम्पूर्ण/यथासम्भव तैयारियाँ की गयी हैं।  डेंगू  के बढ़ते प्रकोप के दृष्टिगत जनपद देहरादून के हाॅट-स्पाॅट वाले 25 वार्डों में डेंगू नियंत्रण के लिए  माइक्रो प्लान तैयार कर विषेष अभियान चलाते हुए डेंगू सर्वे/डेंगू निरोधात्मक कार्यवाही विभागीय अधिकारियों/कार्मिकों, आशाओं, नगर निगम एवं जिला प्रषासन के माध्यम से  की जा रही है।
जगह-जगह एकत्र हुये पानी में लार्वासाईड डाले जा रहे हैं । सभी लोग अपने घर व घर के आस-पास पानी एकत्र न होने दे ताकि एडिज मच्छर के लार्वा उत्पन्न न हो सके।      6-डेंगू को लेकर जो सरकारी आंकड़े मीडिया के लिए जारी किए जा रहे हैं, उनमें विशेष रूप से देहरादून, हरिद्वार और नैनीताल के आंकड़ों को लेकर भ्रम की स्थिति है,  जबकि इन तीनों स्थानों पर डेंगू के मरीज कहीं ज्यादा सामने आ रहे हैं। निजी अस्पतालों व क्लीनिक में भी बड़ी संख्या में मरीज इलाज करवा रहे हैं।
-हर बुखार से ग्रसित मरीज  को डेंगू केस नहीं माना जा सकता है।  जिन रोगियों की एलाईजा रिपोर्ट धनात्मक आती है, उन्हें ही डेंगू रोगी माना जाता है।  मुख्य चिकित्सा अधिकारियों को रियल टाईम डेटा उपलब्ध कराने के लिए निर्देशित किया जायेेगा।
7-अभी भी अस्पतालों में बेड, प्लेटलेट्स व ब्लड की कमी देखी जा रही है। कितने प्रयास आपके स्तर से इसे पूरा करने के लिए किए गए हैं। सचिव स्वास्थ्य भी इस बारे में विशेष रूप से निर्देश दे चुके हैं।
-मुख्य चिकित्सा अधिकारी से मिली सूचना अनुसार चिकित्सालयों में डेंगू मरीजों  के लिए  आरक्षित शैय्यायें 20 प्रतिशत से बढ़ाकर 30 प्रतिशत कर दी गयी हैं।  डेंगू केसों के आधार पर और शैय्यायें बढ़ायी जायेंगे।  गाँधी नेत्र चिकित्सालय में 40 शैय्यायें डेंगू मरीजों  के लिए तैयार किये गये हैं।ये शैय्यायें भर जाने की स्थिति में और शैय्यायें बढ़ा दी जायेंगी।
8-उत्तराखंड में 14 और अकेले देहरादून में डेंगू से 13 लोगों की मौत हो चुकी है । इससे लोगों में भय और खौफ है और डेंगू को लेकर गलत संदेश जा रहा है। क्या विभाग की ओर से जन जागरूकता और प्रचार प्रसार की कमी इसका कारण है।
-डेंगू फीवर से ग्रस्त रोगियों की शाॅक सिन्ड्रोम के कारण मृत्यु हुई हैं तथा कुछ प्रकरणों में रोगी अन्य बिमारियों से भी पूर्व से ग्रसित थे। डेंगू को लेकर घबराने की नहीं बल्कि जागरूक रहने और सावधानी बरतने की जरूरत है।
9-मुख्यमंत्री व स्वास्थ्य मंत्री के अलावा शहरी विकास मंत्री भी डेंगू के हालात ,रोकथाम व नियंत्रण को लेकर कई बैठके ले चुके हैं, इसके बाद क्या अतिरिक्त व्यवस्थाएं की गई हैं।
-डेंगू की रोकथाम के लिए  कई विभागों का सहयोग लिया जा रहा है। स्वास्थ्य विभाग की ओर से लोगों को जागरूक किया जा रहा है ।घर-घर जाकर सर्वे किया जा रहा है। लार्वा को नष्ट किया जा रहा है। फागिंग की जा रही है। डेंगू नियंत्रण और रोकथाम के लिए सभी संभव व्यवस्थाएं विभाग की ओर से की गई हैं।
10-उत्तराखंड में यू कोट वी पे योजना के तहत  24 स्पेशलिस्ट व सुपर स्पेशलिस्ट चिकित्सकों का चयन पर्वतीय क्षेत्रों में नियुक्ति के लिए किया गया था, मगर कहा जा रहा है कि कई चिकित्सक अभी भी पहाड़ नहीं चढ़ पाए हैं, क्या कारण मानती हैं।
-राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन द्वारा यू कोट वी पे योजना के तहत  विशेषज्ञ चिकित्सकों की भर्ती की गयी है, उनमें से कितने चिकित्सकों ने अभी तक योगदान किया  है उसकी जानकारी प्राप्त नहीं है।  शायद प्रदेश की भौगोलिक परिस्थितियों या व्यक्तिगत कारणों से विषेषज्ञ चिकित्सक तैनाती स्थान पर योगदान नहीं कर रहे हैं।  विशेषज्ञ चिकित्सक यदि योगदान करते हैं तो स्वास्थ्य सुविधायें बेहतर होंगी।

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