राष्ट्रीय

मुसलमानों के आर्थिक बहिष्कार तक पहुंचा हिजाब विवाद

लोगों में नई सियासी बहस का विषय बना
मुंबई। हिजाब विवाद पर हाल ही में कर्नाटक उच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद मंदिर परिसर में दुकानें लगानेवाले मुस्लिम व्यवसाइयों ने इस फैसले के विरोध में अपनी दुकानें बंद रखी थीं। अब कर्नाटक के धार्मिक स्थाल अपने परिसरों में हिंदुओं के अतिरिक्त अन्य किसी को भी दुकानों का आवंटन न करने का निर्णय कर रहे हैं। उनका ये फैसला मुस्लिम समुदाय को आर्थिक चोट तो पहुंचा ही रहा है, नई सियासी बहस का विषय भी बन गया है।
पिछले सप्ताह कर्नाटक के छह प्रमुख धार्मिक स्थलों ने अपने परिसरों में हिंदुओं के अतिरिक्त अन्य किसी को भी दुकानों का आवंटन न करने का फैसला किया है। क्योंकि हिजाब विवाद पर कर्नाटक उच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद इन सभी दुकानदारों ने कोर्ट के फैसले के विरोध में अपनी दुकानें बंद रखी थीं। जबकि अब तक कई प्रमुख धार्मिक स्थलों में वर्षों से मुस्लिम व्यवसायी मंदिरों में बिकनेवाली पूजन सामग्री इत्यादि का व्यवसाय करते आ रहे थे।
दूसरी ओर कर्नाटक सरकार ने भी करीब 20 साल पहले की कांग्रेस सरकार द्वारा लिए गए एक फैसले की आड़ लेते हुए मंदिर प्रशासन के फैसले में हस्तक्षेप करने से मना कर दिया है। दरअसल सन 2002 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने कर्नाटक हिंदू धार्मिक संस्थान एवं धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम के नियम 12 में कहा गया है कि किसी हिंदू धार्मिक संस्थान या स्थल की भूमि को किसी गैर हिंदू को पट्टे पर नहीं दिया जाएगा।
मुस्लिम व्यापारियों को मंगलूरु में श्री मंगलादेवी मंदिर, बप्पनडु दुर्गापरमेश्वरी मंदिर, कटिपल्ला गणेशपुरा श्री महागणपति मंदिर एवं पुत्तूर श्री महालिंगेश्वर मंदिर में व्यापार करने से वंचित कर दिया गया है। मेले में गैर-हिंदू व्यापारियों पर प्रतिबंध को लेकर मंदिरों के सामने बैनर लगाए गए हैं। इस फैसले के पीछे हिंदू वेदिक एवं तुलुनाडु हिंदू सेना, कौप जैसे संगठनों की आक्रामक भूमिका नजर आ रही है।
उडुपी में पत्रकारों से बात करते हुए उडुपी डिस्ट्रिक्ट स्ट्रीट वेंडर्स एसोसिएशन के जिला सचिव मोहम्मद आरिफ ने स्वीकार किया कि वार्षिक कौप मरीगुड़ी उत्सव के दौरान बैनर लगाए गए थे। जिसमें कहा गया था कि मुस्लिम विक्रेताओं को प्रवेश की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। आरिफ के अनुसार इसी तरह के बैनर पादुबिद्री मंदिर उत्सव में भी प्रदर्शित किए गए थे। इस एसोसिएशन ने मुस्लिम स्ट्रीट वेंडर्स को हिंदू त्यौहारों एवं वार्षिक मंदिर मेलों के दौरान व्यवसाय करने की अनुमति देने का आग्रह किया है।
तुलुनाडु हिंदू सेना की ओर से मंदिर प्रशासन को दिए गए ज्ञापन में साफ चेतावनी दी गई है कि यदि ‘सुग्गी मारी पूजा’ के दौरान किसी भी मुस्लिम को स्टाल लगाने की अनुमति दी जाती है, तो समस्या और खतरे के लिए आप (मंदिर के अधिकारी) जिम्मेदार होंगे। तुलुनाडु हिंदू सेना का तर्क है कि जिन लोगों में हमारे भगवान, हमारे धार्मिक स्थलों का सम्मान नहीं है, और वे एक अलग धर्म का पालन करते हैं, उन्हें हमारे धार्मिक त्यौहारों के दौरान व्यापार की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
इसी प्रकार हिंदू वेदिक के नेता प्रकाश का कहना है कि उन्हें (मुस्लिमों को) देश के कानून एवं उच्चन्यायालय के फैसले का कोई सम्मान नहीं है। हिंदू समाज को ऐसे लोगों को व्यापार करने का मौका नहीं देना चाहिए। प्रकाश के अनुसार मंदिर प्रबंधन ने हिंदू संगठनों के अनुरोध पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है, और इस बार मंदिर परिसर के भीतर अन्य धर्म के लोगों को व्यापार की अनुमति नहीं देने का फैसला किया है।
प्रकाश कुछ पुरानी बातें भी याद दिलाते हुए कहते हैं कि जब हमने गंगोली में गोहत्या का विरोध किया था, तो मुसलमानों ने हिंदू मछुवारों से मछली खरीदने का बहिष्कार किया था। संख्या में कम होने के बावजूद जब वे अपनी ताकत दिखा सकते हैं, तो हम क्यों नहीं ? जबकि बजरंग दल के अखिल भारतीय सहसंयोजक सूर्यनारायण राव का कहना है कि उनका संगठन मुसलमानों के खिलाफ नहीं है। वह केवल उन लोगों के खिलाफ है, जो देश के कानून एवं हिजाब पर उच्चन्यायालय के फैसले का विरोध कर रहे हैं।

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