सत्ता संभालने के बाद बतौर पीएम शहबाज शरीफ के सामने होंगी ये तीन बड़ी चुनौतियां
नई दिल्ली। इमरान खान के सत्ता से बाहर होने के बाद पाकिस्तान की कमान अब पूर्व पीएम नवाज शरीफ के छोटे भाई शहबाज शरीफ के हाथ आ गई है। उल्लेखनीय है कि रविवार को नेशनल असेंबली में विपक्ष की ओर से आए अविश्वास प्रस्ताव में हार के साथ ही इमरान खान इस तरह सरकार गंवाने वाले पहले प्रधानमंत्री बने। फिलहाल बतौर पीएम सत्ता संभालने जा रहे शहबाज के लिए राह बहुत आसान नहीं होने जा रही है। इमरान के खिलाफ बने माहौल में वहां की खराब होती अर्थव्यवस्था की बड़ी भूमिका थी। अभी पाकिस्तान पर 130 अरब डालर (करीब 7.8 लाख करोड़ रुपये) का कर्ज है। पाकिस्तानी रुपये में यह कर्ज 23.79 लाख करोड़ रुपये है, जो वहां की जीडीपी के 43 प्रतिशत के बराबर है। महंगाई भी 12 प्रतिशत से ऊपर चल रही है। पाकिस्तानी रुपया अमेरिकी डालर के मुकाबले गिरकर 190 पर आ गया है। इस्लामाबाद में एक शोध संगठन पाकिस्तान इंस्टीट्यूट आफ डेवलपमेंट इकोनमिक्स (पीआइडीई) के कुलपति नदीम उल हक का कहना है कि पाकिस्तान इस समय दिशाहीन है। अर्थव्यवस्था में बदलाव के लिए को बदलने के लिए सख्त नीतिगत सुधारों की आवश्यकता है।
पूरे विश्व में पाकिस्तान की पहचान आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले देश के रूप में है। पाकिस्तान खुद भी इस आतंकवाद का दंश झेल रहा है। हाल के महीनों में पाकिस्तान में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के हमले तेज हो गए हैं। टीटीपी को ‘पाकिस्तानी तालिबान’ भी कहा जाता है। इस आतंकी संगठन की जड़े अफगानिस्तान से जुड़ी हैं। इमरान ने इस स्थिति से निपटने के लिए टीटीपी से वार्ता का भी प्रयास किया था, लेकिन वह विफल रहा। जानकारों का कहना है कि नई सरकार के सामने पैर पसारता आतंकवाद बड़ी चुनौती है। बलूचिस्तान में स्थानीय विद्रोह से निपटना भी उसके लिए आसान नहीं होगा।
सियासी संघर्ष के बीच इमरान खान ने यहां तक कह दिया था कि उनकी सरकार गिराने के पीछे अमेरिकी साजिश है। इस बयान को अमेरिका और पाकिस्तान के बीच रिश्ते में दरार के तौर पर देखा जा रहा है। नए प्रधानमंत्री को अमेरिका के साथ रिश्ते सुधारने की दिशा में भी काम करना होगा। यूक्रेन पर रूस के हमले के दौरान इमरान के मास्को दौरे ने भी पश्चिमी देशों से पाकिस्तान के रिश्ते खराब किए हैं। यही नहीं, जब कई देश मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर चीन की राजधानी बीजिंग में हो रहे विंटर ओलिंपिक्स का विरोध कर रहे थे, तब इमरान कार्यक्रम में शामिल हुए थे। राजनीतिक विश्लेषक तौसीफ अहमद खान ने कहा कि नई सरकार को विदेश नीति के मोर्चे पर हुए इस नुकसान की भरपाई के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी।