ग्लोबल मेक इन इंडिया रक्षा कार्यक्रम के तहत देश में ही बनेंगे विदेशी कंपनियों के लड़ाकू विमान
सरकार का रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता पर जोर
नई दिल्ली। भारत सरकार रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता पर जोर दे रही है। इसके लिए बाय ग्लोबल मेक इन इंडिया रक्षा कार्यक्रम की शुरुआत की गई है। यह देश के भीतर विदेशी हथियार प्रणालियों के अधिग्रहण और उनके उत्पादन को सुगम बनाने के लिए रक्षा उपकरणों की खरीद प्रक्रिया की एक श्रेणी है। वर्ष 2020 में इस श्रेणी को मंजूरी दी गई थी।
पिछले दिनों 114 मल्टी रोल लड़ाकू विमान (एमआरएफए) के निर्माण के लिए टेंडर दिया गया था। अब वायुसेना का जोर है कि इन विमानों का निर्माण बाय ग्लोबल मेक इन इंडिया रूट से ही हो। इन 114 एमआरएफए विमान के शामिल होने के बाद उत्तरी और पश्चिमी मोर्चे पर भारत की ताकत और बढ़ेगी। एफ-18, एफ-15 और एफ-21 (एफ-16 का संशोधित संस्करण) सहित तीन अमेरिकी कंपनियों, रूसी कंपनी मिग -35 और एसयू-35 सहित फ्रांस की राफेल, स्वीडिश साब ग्रिपेन और यूरोफाइटर टाइफून कंपनी इस कार्यक्रम में शामिल हो सकती हैं।
भारतीय वायु सेना ने अधिग्रहण प्रक्रिया पर इन कंपनियों के विचार भी मांगे थे। उनमें से अधिकांश ने ग्लोबल मेक इन इंडिया रूट के लिए प्राथमिकता दिखाई है। सूत्रों ने कहा कि बल ने परियोजना पर सरकार से निर्देश मांगा है कि वह आगे की कार्रवाई के लिए रक्षा मंत्रालय से मंजूरी के लिए कब अनुरोध कर सकता है। सूत्रों ने कहा कि राफेल लड़ाकू विमान के दो स्क्वाड्रन साथ पूरी तरह से सक्रिय हैं। डिलीवरी के लिए केवल एक विमान बचा है। सूत्रों ने कहा कि 83 एलसीए मार्क 1ए भारतीय वायुसेना को मिग-सीरीज के विमानों को बदलने में मदद करेगा क्योंकि मिग-23 और मिग-27 को पहले ही चरणबद्ध तरीके से हटाया जा चुका है और अब मिग-21 को भी चरणबद्ध तरीके से हटाया जा रहा है।