पांच बरस पुरानी है बिजली संकट की कहानीय संयंत्रों की निगरानी भगवान भरोसे
नई दिल्ली। देश में संभावित बिजली संकट को रोकने में बिजली, कोयला और रेल मंत्रालय की सक्रियता चरम पर है। बिजली संयंत्रों को कोयला आपूर्ति सुचारु करने के लिए ना केवल कोल इंडिया लिमिटेड ने उत्पादन बढ़ाया है बल्कि कोयला ढुलाई के लिए रेल मंत्रालय के साथ मिलकर काम भी कर रहा है। इसके बावजूद महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, पंजाब समेत कुछ दूसरे राज्यों में बिजली की कटौती शुरू हो गई है।
माना जा रहा है कि अगर कोयला आपूर्ति तेजी से नहीं बढ़ाई गई तो मई के पहले पखवाड़े में देश के कई राज्यों में बिजली कटौती की स्थिति पैदा हो जाएगी। ऐसे में अगर बिजली मंत्रालय की तरफ से दिए गए आंकड़ों पर गौर करें तो साफ हो जाता है कि बिजली संकट की यह स्थिति पिछले चार-पांच वर्षों के दौरान धीरे-धीरे कोयला आधारित बिजली संयंत्रों की पूरी निगरानी नहीं करने और कोयला उत्पादन में अपेक्षित बढ़ोतरी नहीं होने से बनी है।
वर्ष 2017-18 के बाद के पांच वर्षों के दौरान देश में बिजली की स्थिति पर नजर डालें तो यह पता चलता है कि इस दौरान पीक आवर डिमांड (24 घंटे में किसी एक समय बिजली की अधिकतम मांग) में 24 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। पीक आवर डिमांड इस अवधि में 1.64 लाख मेगावाट से बढ़कर दो लाख मेगावाट हो चुका है। लेकिन इस दौरान देश में बिजली का उत्पादन 1308 अरब यूनिट से बढ़कर सिर्फ 1320 अरब यूनिट हुआ है।
असलियत में 2014-15 के बाद से सालाना स्तर पर बिजली उत्पादन की दर लगातार घटती रही है। उस वर्ष बिजली उत्पादन में 8.84 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी, वर्ष 2018-19 में उत्पादन में 5.19 प्रतिशत की वृद्धि हुई। वर्ष 2019-20 में यह वृद्धि दर घटकर सिर्फ 0.95 प्रतिशत रह गई। इसके बाद के वर्ष 2020-21 में तो 2.49 प्रतिशत की गिरावट हुई।
वर्ष 2021-22 के दौरान बिजली उत्पादन 6.9 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 1320 अरब यूनिट हुआ है। चिंता की बात यह है कि कोयला आपूर्ति बढ़ाने के बावजूद बिजली उत्पादन पिछले तीन महीनों से 1320 अरब यूनिट के आसपास बना हुआ है। ऐसे में अगर मई, 2022 में बिजली की मांग में ज्यादा उछाल आएगा तो स्थिति बिगड़ सकती हैं।