पेट्रो उत्पाद हैं कमाई का बड़ा जरिया, केंद्र सरकार पेट्रोलियम सेक्टर पर लगाती है नौ तरह के टैक्स
नई दिल्ली। पेट्रोलियम उत्पादों पर लगाए जाने वाले कर को लेकर देश में राजनीतिक माहौल बेहद गर्म हो चुका है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विपक्षी पार्टियों को राज्य सरकारों को वैट नहीं घटाने पर जिस तरह से निशाने पर लिया है, उसका इन राज्य सरकारों ने गहरा प्रतिरोध किया है। हालांकि इस राजनीतिक विवाद के बीच हकीकत यह है कि केंद्र सरकार हो या किसी भी पार्टी की राज्य सरकारें, वे हमेशा से पेट्रोलियम उत्पादों को अपना खजाना भरने का माध्यम मानती रही हैं।
केंद्र और राज्यों की इसी आदत के चलते कोरोना काल में जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल 30 डालर प्रति बैरल पर आ गया था तब भी आम जनता को पेट्रोल-डीजल की कीमत में कोई राहत नहीं मिली। वहीं अब कच्चा तेल 100 डालर से ऊपर चल रहा है तो जनता को ज्यादा कीमत अदा करनी पड़ रही है।
केंद्र सरकार पेट्रोलियम सेक्टर पर नौ तरह के टैक्स लगाती है। पेट्रोल की बात करें तो इस पर 1.50 रुपये प्रति लीटर की बेसिक एक्साइज ड्यूटी लगाई जाती और 11 रुपये प्रति लीटर की दर से विशेष अतिरिक्त एक्साइज ड्यूटी लगाई जाती है। इसके बाद 15.50 रुपये प्रति लीटर की दर से कृषि शुल्क और रोड और इन्फ्रास्ट्रक्चर सेस वसूला जाता है।
खास बात यह है कि केंद्र सिर्फ उत्पाद शुल्क के मद में वसूले गए शुल्क का ही 42 प्रतिशत राज्यों को देता है। सेस के तौर पर लिए गए शुल्क में राज्यों को हिस्सा नहीं दिया जाता है। डीजल पर उत्पाद शुल्क की कुल दर 9.80 रुपये प्रति लीटर और अधिभार के तौर पर 12 रुपये प्रति लीटर वसूला जा रहा है।
नवंबर, 2021 में केंद्र ने पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क में पांच रुपये प्रति लीटर और डीजल में 10 रुपये प्रति लीटर की कटौती करने का फैसला किया था। इसके बाद भाजपा शासित कर्नाटक, गुजरात, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, असम, बिहार, मध्य प्रदेश के अलावा राजस्थान, पंजाब, ओडिशा, दिल्ली जैसे गैर भाजपाई राज्यों ने भी पेट्रो उत्पादों पर स्थानीय शुल्क (वैट) में कटौती की थी। हालांकि महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, केरल, मेघालय, अंडमान और निकोबार, झारखंड, छत्तीसगढ़ ने वैट में कटौती नहीं की थी।