डायलिसिस कराने वाले चार में तीन भारतीय हाइपरटेंशन से भी ग्रस्त, युवतियों में हाई बल्ड प्रेशर बड़ी समस्या
नई दिल्ली। एक अध्ययन में बताया गया है कि भारत में हीमो डायलिसिस कराने वाले चार में तीन लोग हाइपरटेंशन से भी ग्रस्त होते हैं। इसमें यह भी पता चला है कि 21-40 साल उम्र वर्ग की महिलाओं में हाइपरटेंशन के मामले बढ़ रहे हैं। यह इस बात का संकेत है कि युवा महिलाओं में हाइपरटेंशन स्वास्थ्य की एक बड़ी समस्या बनती जा रही है।
अध्ययन में देश के अग्रणी डायलिसिस केयर ब्रांड नेफ्रो प्लस द्वारा कवर किए गए 16,847 लोगों को शामिल किया गया। अध्ययन में बताया गया है कि बुजुर्ग महिलाओं में ज्यादा वजन, व्यायाम या शारीरिक श्रम में कमी, हाई सोडियम वाली डाइट और जीनेटिक स्थिति हाई ब्लड प्रेशर के लिए जिम्मेदार कारकों में शामिल हैं। अध्ययन में यह भी पाया गया कि डाइट और दवाओं बदलाव से डायलिसिस वाले रोगियों में ब्लड प्रेशर को प्रभावित किया जा सकता है।
नेफ्रो प्लस के सीनियर वाइस प्रेसीडेंट (क्लीनिकल अफेयर्स) सुरेश शंकर ने बताया कि हीमोडायलिसिस कराने वाले रोगियों में दो-तिहाई से लेकर तीन-चौथाई तक की संख्या हाइपरटेंशन वालों की है। ब्लड प्रेशर की गणना डायलिसिस से प्रभावित होती है। इसके अलावा डायलिसिस कराने वाले रोगियों में डाइट और दवाओं के कारण भी ब्लड प्रेशर कंट्रोल प्रभावित होता है। अध्ययन से यह भी पता चला कि क्रानिक किडनी डिजीज (सीकेडी) के रोगियों में हाइपरटेंशन की अधिकता होती है, जो इस बात की अहमियत बताती है कि शुरुआती चरणों में ही ब्लड प्रेशर कंट्रोल करना कितना जरूरी है।
सुरेश शंकर ने बताया कि हाइपरटेंशन के कारण आगे चलकर किडनी के रोग या किडनी फेल होने का खतरा बढ़ सकता है। बढ़ते समय के साथ अनियंत्रित हाई ब्लड प्रेशर से किडनी के इर्दगिर्द आर्टिरीज संकरी हो सकती हैं या वे कमजोर या सख्त हो सकती हैं। इस तरह से क्षतिग्रस्त आर्टिरीज किडनी ऊतकों को पर्याप्त मात्रा में ब्लड की आपूर्ति नहीं कर पाती हैं। इससे किडनी फिल्टर को नुकसान पहुंचता है और पेशाब में गड़बड़ी पैदा होती है।