उत्तराखण्ड

उत्तराखंड हाईकोर्ट की डबल बेंच से विधानसभा सचिवालय से बर्खास्त कर्मचारियों को बड़ा झटका, एकल पीठ के बहाल किए जाने के आदेश को किया निरस्त

  • मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने विधानसभा से पारित आदेश को सही ठहराया

  • हाईकोर्ट ने कहा, बर्खास्तगी के आदेश को स्टे नहीं किया जा सकता

नैनीताल : उत्तराखण्ड हाईकोर्ट ने विधान सभा सचिवालय से बर्खास्त कर्मचारियों को एकलपीठ के बहाल किए जाने के आदेश को चुनौती दिए जाने वाली विधान सभा  की दायर विशेष अपीलों पर सुनवाई की। मामले को सुनने के बाद मुख्य न्यायधीश विपिन सांघी व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खण्डपीठ ने एकलपीठ के आदेश को निरस्त करते हुए विधान सभा से पारित आदेश को सही ठहराया है। कोर्ट ने कहा कि बर्खास्तगी के आदेश को स्टे नही किया जा सकता। विधान सभा सचिवालय की तरफ़ से कहा गया कि इनकी नियुक्ति काम चलाऊ व्यवस्था के लिए की गई थी। शर्तों के मुताबिक इनकी सेवाएं कभी भी समाप्त की जा सकती है। बिना किसी कारण व नोटिस के। इनकी नियुक्तियां विधानसभा सेवा नियमावली के विरुद्ध जाकर की गई हैं। कर्मचारियों की ओर से कहा गया कि उनको बर्खास्त करते समय अध्यक्ष  ने संविधान के अनुच्छेद 14 का पूर्ण रूप से  उल्लंघन किया है। विधानसभा अध्यक्ष ने 2016 से 21 तक के कर्मचारियों को ही बर्खास्त किया है ,जबकि ऐसी ही नियुक्तियाँ विधान सभा सचिवालय में 2000 से 2015 के बीच मे भी हुई है, जिनको नियमित भी किया जा चुका है। यह नियम तो सब पर एक समान लागू होना था । उन्ही को बर्खास्त क्यों किया। उमा देवी बनाम कर्नाटक राज्य का निर्णय उन पर लागू नही होता क्योंकि यह वहाँ लागू होता है, जहां पद खाली नही हो और बैकडोर नियुक्तियां की गई हों। यहाँ पद खाली थे तभी नियुक्तयां हुई। अपनी बर्खास्तगी के आदेश को बबिता भंडारी, भूपेंद्र सिंह बिष्ठ व कुलदीप सिंह व 102 अन्य ने एकलपीठ ने चुनौती दी थी। याचिकाओ में कहा गया था कि विधानसभा अध्यक्ष ने लोकहित को देखते हुए उनकी सेवाएं 27, 28 व 29 सितम्बर को समाप्त कर दी। बर्खास्तगी आदेश मे उन्हें किस आधार पर किस कारण की वजह से हटाया गया कहीं इसका उल्लेख नही किया गया, न ही उन्हें सुना गया। जबकि उनके द्वारा सचिवालय में नियमित कर्मचारियों की भांति कार्य किया गया है। एक साथ इतने कर्मचारियों को बर्खास्त करना लोकहित नही है। यह आदेश विधि विरुद्ध है। विधान सभा सचिवालय में 396 पदों पर बैक डोर नियुक्तियां 2002 से 2015 के बीच में भी हुई हैं, जिनको नियमित किया जा चुका है। लेकिन उनको किस आधार पर बर्खास्त किया गया। याचिका में कहा गया है कि 2014 तक हुई तदर्थ रूप से नियुक्त  कर्मचारियों को चार वर्ष से कम की सेवा में नियमित नियुक्ति दे दी गई।  लेकिन  उन्हें 6 वर्ष के बाद भी स्थायी नहीं किया, अब उन्हें हटा दिया गया। पूर्व में भी उनकी नियुक्ति को 2018 में जनहित याचिका दायर कर चुनौती दी गयी थी, जिसमे कोर्ट ने उनके हित में आदेश देकर माना था कि उनकी नियुक्ति वैध है। उसके बाद एक कमेटी  ने  उनके सभी शैक्षणिक प्रमाण पत्रों की   जाँच की  जो वैध पाई गए।  जबकि नियमानुसार छः माह की नियमित सेवा करने के बाद उन्हें नियमित किया जाना था

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button