मम्पस मतलब गलसुआ व हप्पू : वायरल इंफेक्शन के कारण चपेट में आ रहे बच्चे,नजले जुकाम का असर बढा रहा परेशानी, विशेषज्ञ बोले, बच्चों को सर्दी से बचाएं
गलसुआ होने पर बच्चे को तरल आहार और खूब पानी पिलाएं, बच्चों के ठंडी, खट्टी और बाहर के खाने से करें परहेज, घर पर ज्यादा से ज्यादा आराम कराएं
एस.आलम अंसारी
देहरादून। पूरे देश के साथ ही उत्तराखंड में भी मम्पस जिसे हम गलसुआ व हप्पू भी कहते हैं बच्चों में हो रहा है। वायरल इंफेक्शन के कारण बच्चे इसकी चपेट में आ रहे हैं। नजला और जुकाम का असर और ज्यादा परेशानी बढ़ा रहा है। जिला अस्पताल देहरादून ,दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल और निजी चिकित्सकों के यहां गलसुआ से पीड़ित बच्चे प्रतिदिन इलाज के लिए पहुंच रहे हैं।
विशेषज्ञ चिकित्सकों के मुताबिक गलसुआ या मम्पस एक प्रकार का वायरल इन्फेक्शन होता है, जो मुख्य रूप से लार ग्रंथियों को प्रभावित करता है, इन ग्रंथियों को पैरोटिड ग्रंथियां भी कहा जाता है। ये ग्रंथियां लार बनाती हैं। लार ग्रंथियों के तीन समूह होते हैं जो मुंह के तीनों तरफ होते हैं जो कानों के पीछे और नीचे स्थित होते हैं।
गलसुआ के सबसे मुख्य लक्षण लार ग्रंथियों में सूजन होती है गलसुआ के लक्षण शुरू होने के बाद ये 14 से 18 दिनों तक रहते हैं। आमतौर पर इस रोग की अवधि लगभग सात से दस दिन तक की मानी जाती है। गलसुआ में आमतौर पर एक या दोनों तरफ की ग्रंथियों (गाल व जबड़े वाले क्षेत्र) में दर्द, सूजन और छूने पर दर्द होना आदि शामिल होते हैं।
गलसुआ की रोकथाम में एमएमआर टीकाकरण कारगर माना जाता है। गलसुआ के लिए कोई खास इलाज उपलब्ध नहीं है। लार ग्रंथियों में छूने पर दर्द होना और सूजन आदि की समस्या को कम करने के लिए उन्हें गर्म व ठंडी चीजों से सेकना राहत दे सकता है। मम्पस या गलसुआ का कारण वायरस के कारण होने वाला संक्रमण होता है। यह संक्रमित व्यक्ति की लार व अन्य रिसाव आदि से स्वस्थ व्यक्तियों में फैलता है। जब गलसुआ रोग होता है, तब वायरस श्वसन तंत्र से लार ग्रंथियों तक पहुंचता है और वहां जाकर प्रजनन करने लगता है, जिस कारण ग्रंथियों में सूजन आने लगती है।
जुकाम और फ्लू की तरह गलसुआ रोग भी फैलने वाला रोग है। गलसुआ लार की बूंदों से फैल सकता है जिनको सांस के द्वारा अंदर लिया जा सकता है या सतह से उठाकर मुंह या नाक तक ले जाया जा सकता है। बच्चों को सर्दी से बचाना बेहद जरूरी हो जाता है ताकि उन्हें नजला व जुकाम की शिकायत ना हो और इस नजले जुकाम का इन्फेक्शन नाक के जरिए उनके गले में न पहुंचे।मम्प्स का विशिष्ट इलाज नहीं है। बेचैनी को कम करने के लिए, बच्चों को खाने के लिए नरम आहार देना चाहिए और उन खाद्य पदार्थों से बचना चाहिए जिन्हें ज़्यादा चबाना पड़ता है या जो अम्लीय होते हैं
मम्पस (गलसुआ) में होने वाले लक्षण
गलसुआ के लक्षण मरीज के संक्रमित होने के बाद आमतौर पर 2 से 3 हफ्तों के बीच दिखाई देते हैं। गलसुआ के वायरस से संक्रमित कुछ लोगों में या तो कोई भी लक्षण महसूस नहीं हो पाता या फिर बहुत ही हल्के लक्षण पैदा होते हैं। जब संकेत और लक्षण विकसित होते हैं, तो वे आमतौर पर वायरस के संपर्क के लगभग दो से तीन हफ्तों के बाद प्रकट होते हैं और लक्षणों में चबाने और निगलने में कठिनाई, चेहरे के एक तरफ या दोनों तरफ की लार ग्रंथियों में सूजन, बुखार,थकान और कमजोरी,भूख न लगना, सिरदर्द,मांसपेशियों में दर्द,गलसुआ में सबसे मुख्य लक्षण लार ग्रंथियों में सूजन ही होता है जिसके कारण गाल फूलने लगते हैं। मुंह सूखना,जोड़ों में दर्द
वयस्कों को गलसुआ बहुत ही कम मामलों में होता है। इस मामले में लक्षण आमतौर पर समान ही होते हैं। लेकिन कभी-कभी लक्षण थोड़े विकट हो जाते हैं और उनमें गलसुआ से और कई जटिलताएं पैदा होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। इसलिए लक्षण होने पर बेहद सावधानी बरतने की जरूरत होती है।
कैसे फैलता है मम्पस (गलसुआ) रोग
यदि एक व्यक्ति अपनी नाक या मुंह को छूकर किसी दूसरी सतह को छू लेता है तो वह सतह संक्रमित हो जाती है और कोई स्वस्थ व्यक्ति उस सतह के छूने से संक्रमित हो सकता है।
छींकना या खांसने से संक्रमित व्यक्ति के साथ भोजन व पेय पदार्थ शेयर करना संक्रमित व्यक्ति के साथ प्लेट या अन्य बर्तन शेयर करना जो लोग गलसुआ के वायरस से संक्रमित होते हैं वे लगभग 15 दिनों तक संक्रामक रहते हैं व रोग फैला सकते हैं। लक्षण शुरू होने से 6 दिन पहले और शुरू होने के 9 दिन बाद तक इसका असर रहता है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
मम्प्स जिसे हम गलसुआ व हप्पू भी कहते हैं, बच्चों में वायरल इंफेक्शन के कारण होता है । गलसुआ के लक्षण होने पर बच्चों को तुरंत चिकित्सक को दिखाएं। उन्होंने कहा कि बच्चों को गलसुआ होने पर ज्यादा से ज्यादा आराम कराएं। इस रोग में बच्चे की इम्युनिटी कम हो जाती है ऐसे में जरूरी है कि उसे ठंड से बचाया जाए और तरल आहार के साथ-साथ पानी और नारियल पानी ज्यादा से ज्यादा मात्रा में दें। गलसुआ के लक्षण होने पर बच्चों को स्कूल ना भेजें। बच्चों को मास्क लगाकर रखें और अन्य बच्चों के संपर्क में बिना मॉस्क ना आने दें। गलसुआ एक तरह का वायरल इंफेक्शन है जो 5 से 7 दिन बाद ठीक ठीक होने लगता है मगर होने के बाद बच्चों को शुरू के तीन-चार दिन ज्यादा परेशान करता है। यह आमतौर पर 2 वर्ष के बाद बच्चों में होता है।
डॉ अर्चना श्रीवास्तव
वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ, जिला अस्पताल देहरादून
बच्चे को मम्प्स ( गलसुआ ) होने पर जरूरी हो जाता है कि उसे सर्दी से बचाया जाए। लक्षण होने पर फौरन बाल लोग विशेषज्ञ या नाक कान गला रोग विशेषज्ञ को दिखाया जाए। बच्चों को ठंडी, खट्टी तली भुनी, कोल्ड ड्रिंक ,आइसक्रीम, फास्ट फूड और बाहर के खाने से बचाया जाए उसे घर का बना हुआ सादा खाना दिया जाए। यह एक तरह का वायरल इंफेक्शन होता है जो एक सप्ताह बाद ठीक हो जाता है। कभी-कभी एक सप्ताह से ज्यादा भी समय लग जाता है। यह बच्चों में फैलने वाला रोग होता है, इसलिए जरूरी है कि घर में जिस बच्चे को गलसुआ हो रहा हो, उसे अन्य बच्चों से अलग रखा जाए। घर के अन्य बच्चों को गलसुआ रोग वाले बच्चे के साथ खाने-पीने ना दिया जाए। गलसुआ पीड़ित बच्चे को तरल पदार्थ और तरल आहार दिया जाए ताकि उसके गले पर जोर ना पड़े।
डॉ प्रियंका गैरोला
वरिष्ठ नाक, कान ,गला रोग विशेषज्ञ
जिला अस्पताल देहरादून