blog

बांग्लादेश में अमेरिका के रणनीतिक हित स्पष्ट

डॉ. दिलीप चौबे
बांग्लादेश के घटनाक्रम से भारत को राजनीतिक और रणनीतिक रूप से बहुत धक्का लगा है। इस नुकसान की निकट भविष्य में भरपाई हो पाएगी ऐसी संभावना नहीं लगती।

भारत के लिए यह भी अफसोस की बात है कि जिस देश के निर्माण में उसने निर्णायक भूमिका निभाई थी वह फिर गुलामी की सुरंग में प्रवेश कर रहा है। यह विडम्बना है कि बांग्लादेश के नये हुक्मरान इसे दूसरी आजादी की संज्ञा दे रहे हैं। बांग्लादेश में राष्ट्रपिता शेख मुजिबुर रहमान की प्रतिमाओं को तोड़े जाने का दृश्य भारत के लोगों के लिए भी हृदयविदारक है। यह विचारणीय है कि बांग्लादेश का युवा वर्ग इतना गुमराह कैसे हो गया कि वह 1971 की आजादी की विरासत भी भूल गया। कहने के लिए युवा वर्ग के आंदोलन का नेतृत्व स्वतंत्रता प्रेमी और प्रगतिशील छात्र नेता कर रहे थे। वे शेख हसीना के कथित निरंकुश शासन से छुटकारा पाने और वास्तविक लोकतंत्र की स्थापना के लिए सडक़ों पर उतरे थे। लेकिन हिन्दुओं पर लगातार हो रहे हमलों से इस आंदोलन का भयावह चेहरा उजागर हुआ है।

बांग्लादेश की चर्चित लेखिका और भारत में निर्वासन का जीवन जी रही तसलीमा नसरीन ने घटनाक्रम का विश्लेषण किया है। तसलीमा को शेख हसीना के शासनकाल में देश छोडऩे पर मजबूर किया गया था। तस्लीमा शेख हसीना के अपदस्थ होने के बाद दिल्ली आने को नियती का न्याय मान रही हैं। लेकिन इस व्यक्तिगत नाराजगी से अलग होकर वह लोकतंत्र और मजहबी विचारधारा के अंतर्विरोधों का भी जिक्र करती हैं। उनके अनुसार ‘मुस्लिम समाज जब अल्पसंख्यक होता है तो वह लोकतंत्र चाहता है, लेकिन बहुसंख्यक होता है तो वह इस्लामी राज्य की मांग करता है।’ शेख हसीना ने अपने शासनकाल में इसी अंतविरेध को दूर करने की कोशिश की थी।

वह एक लोकतांत्रिक एवं धर्मनिरपेक्ष रूप में देश को विकास के रास्ते पर ले जा रही थीं। इतना ही नहीं विदेश मामलों में वह स्वतंत्र विदेश नीति को अनुसरण करने की कोशिश कर रही थीं। अपनी इन नीतियों के समर्थन में घरेलू स्तर पर वह जनसमर्थन को संगठित करने में कामयब नहीं हो सकीं। बांग्लादेश में विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी का गठजोड़ कायम रहा। इन्हीं हालात में अमेरिका और ब्रिटेन समेत पश्चिमी देशों ने बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन की मुहिम को हवा दी। मुखौटे के रूप में छात्रों और नोबल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस को सामने लाया गया। बांग्लादेश में अमेरिका के रणनीतिक हित स्पष्ट हैं।

वह हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में चीन की नाकाबंदी करना चाहता है। उसने इसी क्रम में भारत को शामिल करने के लिए क्वाड की स्थापना की थी, लेकिन हाल के वर्षो में स्पष्ट हो गया कि भारत दादागिरी के इस खेल में एक पक्ष बनने के लिए तैयार नहीं है। नये हालात में अमेरिका ने वैकल्पिक उपाय के रूप में ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के साथ सैन्य गुट ‘ऑक्स’ की स्थापना की। साथ ही जापान, द. कोरिया और फिलिपींस के साथ गठजोड़ को मजबूत बनाया। केवल बंगाल की खाड़ी का विस्तृत इलाका खाली पड़ा था। इस क्षेत्र में अपनी रणनीतिक दखल को बढ़ाने के लिए अमेरिका ने बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन में भूमिका निभाई।

सवाल यह है कि शेख हसीना और उनकी पार्टी अवामी लीग का क्या भविष्य है। फिलहाल अमेरिका की कोशिश यह होगी कि बांग्लादेश में लोकतंत्र का स्वांग रचाया जाए। साथ ही शेख हसीना की बांग्लादेश वापसी को हर हाल में रोका जाए। अवामी लीग में वैकल्पिक नेतृत्व कायम किया जाए जो अमेरिकी हितों का ध्यान रखे।

भारत ने 1971 में अमेरिका के 7वें नौसैनिक बेड़े को धता बताते हुए बांग्लादेश को आजाद कराया था। आधी सदी बाद क्या भारत फिर ऐसी भूमिका निभाएगा? भारत अपने बलबूते शायद ऐसा करने की स्थिति में नहीं है। उसे इस चुनौती का सामना करने के लिए रूस, चीन और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों का सहयोग हासिल करना होगा। केवल ऐसा व्यापक गठजोड़ ही बंगाल की खाड़ी और हिन्द महासागर को सुरक्षित रख सकता है। केवल इससे पूर्वोत्तर में शांति, स्थिरता तथा भारत के रणनीतिक हितों की सुरक्षा भी संभव है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button