बाल अधिकार संरक्षण आयोग में हुई विद्यालयों से संबंधित मामलों में सुनवाई, कई मुद्दों पर स्कूलों की लापरवाही को लेकर आयोग अध्यक्ष ने जताई सख्त नाराजगी
दून वैली इंटरनेशनल स्कूल देहरादून को नोटिस जारी, वेलहम बॉयज और कॉन्वेंट ऑफ जीसस एंड मैरी स्कूलों के प्रकरण भी रखे गए सामने
देहरादून।बाल अधिकार संरक्षण आयोग में विद्यालयों के खिलाफ नियमों की सुनवाई के लिए एक तिथि निर्धारित की गई थी, जिसमे दून वैली इंटरनेशनल स्कूल देहरादून , वेल्लेम बोएस स्कूल देहरादून, कॉन्वेंट ऑफ जीसस एंड मैरी स्कूल को आयोग में सुनवाई के लिए बुलवाया गया ।
दून वैली इंटरनेशनल स्कूल देहरादून के संस्थापक संजय चौधरी सुनवाई में अनुपस्थित रहे, जिस कारण आयोग अध्यक्ष डॉ गीता खन्ना ने नाराजगी जाहिर की एवं नोटिस जारी किया गया ।
वहीं दूसरी ओर सुनवाई में वेलहम बॉयज स्कूल देहरादून,के प्रधानाचार्य ने दस्तावेज आयोग को जमा कराए तथा संस्थापक को 8 अक्टूबर आयोग में उपस्थित होने के लिए निर्देशित किया ।
कॉन्वेंट ऑफ जीसस एंड मैरी स्कूल में छात्रों के बीच आपसी मारपीट की एक घटना को लेकर आयोग में सुनवाई के लिए प्रिंसिपल सिस्टर एलिस अनुपस्थित रहीं । विद्यालय से शिक्षिका ने प्रतिनिधित्व किया एवं उन्होंने बताया कि प्रधानाचार्य सिस्टर एलिस शहर में मौजूद नहीं है इसलिए वह उपस्थित नहीं हो सकीं।
इससे पूर्व में भी प्रधानाचार्य की अनुपस्थिति रही है जो कि आयोग के आदेशों की अवहेलना के साथ अत्यंत चिंताजनक है। आयोग ने यह पाया कि प्रधानाचार्य सिस्टर एलिस की गैरमौजूदगी का बहाना सही नहीं था और इसे आयोग को गुमराह करने का प्रयास माना गया। थाना डालनवाला ने उन्हें विद्यालय में उपस्थित पाया पर उन्होंने कोई स्पष्टतः कारण नहीं बताया ।
आयोग ने स्पष्ट किया है कि हर विद्यालय को आरक्षण संबंधी मुद्दों और साइबर बुलिंग जैसी समस्याओं के निवारण के लिए एक समिति बनानी आवश्यक है। विद्यालयों में काउंसलर के जरिए बच्चों से बातचीत कर, ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकने की योजना बनाई जानी चाहिए। लेकिन, इस प्रकरण के बावजूद, न तो प्रिंसिपल, न ही शिक्षक और न ही अभिभावक कोई उचित कदम उठाते दिखे। प्रधानाचार्य ने इस तरह से ग़लत वक्तव्य देना अति सोचनीय है ।
आयोग ने पहले भी निर्देश दिया था कि हर विद्यालय को अपने गेट पर बाल अधिकार संरक्षण आयोग की ईमेल आईडी, टेलीफोन नंबर और पैरेंट-टीचर एसोसिएशन से संबंधित सभी जानकारी प्रदर्शित करनी चाहिए, ताकि ऐसे मामलों में तत्काल कार्रवाई की जा सके। लेकिन विद्यालय इसका पालन करने में असफल रहे हैं। आयोग ने शिक्षा विभाग को पत्र लिखकर इस पर उचित कार्रवाई के आदेश पारित किए हैं।