डॉ. हरक की केदारनाथ से दावेदारी पर भाजपा में खलबली
बाहरी बनाम स्थानीय की लड़ाई शुरू
चार सीटों ने चुनाव लड़ने की हरक ने जताई इच्छा
रुद्रप्रयाग। ऐसा कहा जाता है कि आपस की लड़ाई का फायदा हमेशा तीसरा उठाता है। कुछ ऐसा ही हाल इन दिनों केदारनाथ विधानसभा सीट में भाजपा में दिख रहा है। जहां दावेदारों की लंबी फेहरिस्त और आपसी सहमति न बनने से बाहरी प्रत्याशी के लिए रास्ता खुल गया है। केदारनाथ सीट पर भाजपा के कद्दावर नेता डॉ। हरक सिंह रावत के दावे से भाजपा की अंदरूनी कलह सामने आ गई है। रावत के दावे के बाद अब भाजपा से टिकट के दावेदारों की नींद उड़ी हुई है। सभी दावेदारों को दो मोर्चों पर एक साथ लड़ाई लड़नी पड़ रही है। एक ओर तो उन्हें अपना टिकट पक्का करने के लिए जोर लगाना पड़ रहा है। वहीं, दूसरी ओर डॉ। हरक सिंह रावत को इस सीट से दूर रखना है। जब से रावत ने भाजपा हाईकमान के सामने चार सीटों का विकल्प रखा है और उसमें केदारनाथ सीट का नाम भी शामिल है, तब से इस सीट के दावेदारों में खलबली मची हुई है। डॉ. हरक सिंह रावत को रोकने के लिए पार्टी नेताओं में अब लामबंदी भी होने लगी है। क्षेत्र में लगातार बाहरी प्रत्याशी के विरोध की खबरें जोर पकड़ रही हैं। वहीं, भाजपा पदाधिकारी भी कहने लगे हैं कि डॉ। रावत का रिकॉर्ड केदारनाथ की जनता ही तोड़ेगी और उन्हें पहली बार उत्तराखंड में हार का मुंह देखना पड़ेगा। दरअसल, कुछ दिन पहले हरक रावत ने लैंसडाउन, डोईवाला, यमकेश्वर एवं केदारनाथ से चुनाव लड़ने की इच्छा हाईकमान के सामने रखी थी। इन चार सीटों में से तीन सीटों पर वर्तमान में भाजपा के विधायक हैं।
यमकेश्वर में भाजपा महिला मोर्चे की प्रदेश अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चन्द्र खंडूड़ी की बेटी ऋतु खंडूड़ी विधायक हैं। डोईवाला से पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत विराजमान हैं। इन सीटों पर भाजपा प्रत्याशी बदलेगी ऐसा लगता नहीं है। ले दे कर लैंसडाउन और केदारनाथ सीट बचती है। लैसडाउन सीट से डॉ. रावत अपनी बहू अनुकृति को प्रत्याशी बनाने का दबाब डाल रहे हैं। इसको देखते हुए वहां के विधायक दलीप रावत ने डॉ. रावत का जोरदार विरोध करना शुरू कर दिया है।
इसको लेकर दलीप रावत ने भाजपा हाईकमान से डॉ. हरक सिंह रावत की शिकायत भी की थी। उन्होंने आरोप लगाया कि लैंसडाउन में स्वीकृत योजनाओं पर भी हरक रावत कार्य नहीं होने दे रहे हैं। रावत को अपने लिए केदारनाथ सबसे मुफीद सीट लग रही है। क्योंकि इस सीट पर 2017 में भाजपा को हार मिली थी। भाजपा इस सीट को हर हाल में जीतना चाहती है, लेकिन इस सीट पर दावेदारों की लंबी फेहरिस्त ने भाजपा हाईकमान को परेशानी में डाला हुआ है।दावेदारों की आपसी फूट को कम से कम करने के लिए भाजपा को यहां से डॉ। हरक रावत को लड़ाना बेहतर लग सकता है। हरक रावत के जीत के रिकार्ड को देखते हुए भाजपा इस सीट पर उन्हें प्रत्याशी बना सकती है। बस इसी बिंदु पर केदारनाथ के दावेदारों को अपनी सीट जाती दिख रही है। अब यहां बाहरी बनाम स्थानीय का नारा बुलंद होने लगा है।पिछली बार केदारनाथ सीट पर अंदरखाने साड़ी मुक्ति का नारा लगा था और यह सच साबित हुआ था। इस बार भाजपा के कई पदाधिकारी बाहरी प्रत्याशी का पुरजोर विरोध करने लगे हैं और पार्टी द्वारा ऐसा करने पर प्रत्याशी को हराने का दावा भी किया जा रहा है। वहीं, अंदरखाने चर्चा है कि जिस भी दावेदार को यह लग रहा है कि उसे टिकट नहीं मिलेगा, वह हरक रावत को इस सीट पर चुनाव लड़ने का न्यौता दे रहा है। इसमें उन्हें दोहरा लाभ दिख रहा है।
क्योंकि डॉ. हरक रावत जीत गए और भाजपा की सरकार बनी तो उन्हें सरकार में दायित्व मिल सकता है। साथ ही जैसा डॉ. रावत का रिकार्ड है कि वे दोबारा उस क्षेत्र से नहीं लड़ते हैं। इसको देखते हुए अगली बार उनका दावा मजबूत हो जाएगा। अब यह तो आने वाले कुछ दिनों में पता चलेगा कि केदारनाथ सीट पर स्थानीय प्रत्याशी होगा या बाहरी, जब भाजपा प्रत्याशियों की लिस्ट जारी करेगी, लेकिन तब तक दावेदारों की सांस और जनता की उत्सुकता दोनों ही अटकी रहेगी।