राष्ट्रीय

ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अन्य मौके बढ़े

शहरों की ओर लौटने लगी मजदूरय मनरेगा की भी मांग घटी
नई दिल्ली। ग्रामीण बेरोजगारों के लिए वैकल्पिक रोजगार के मौके बढ़ते ही मनरेगा में काम मांगने वालों की संख्या तेजी से गिरी है। रबी सीजन वाली फसलों की कटाई चालू होने से ग्रामीण मजदूरों को मनरेगा के मुकाबले बेहतर मजदूरी मिल रही है। इसके साथ ही शहरी और औद्योगिक क्षेत्रों में उद्योग-धंधों और उससे जुड़े अन्य कारोबार में मांग बढ़ने से गावों से मजदूर लौटने लगे हैं। लिहाजा, फरवरी और मार्च महीने में मनरेगा में काम मांगने वालों की संख्या में कमी आई है।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) में श्रमिकों की दिहाड़ी मजदूरी की संशोधित दरें घोषित हो चुकी हैं, जिसमें औसत पांच प्रतिशत की बढ़ोतरी की गई है। लेकिन ज्यादातर राज्यों में कृषि मजदूरी की दरें इससे अधिक हैं। इसी वजह रबी और खरीफ सीजन की बोआई और कटाई के मौसम में मनरेगा में काम मांगने वाले मजदूर खेती के काम में लग जाते हैं। फरवरी में जहां 3.06 करोड़ श्रमिकों ने मनरेगा में काम मांगा वहीं चालू रबी सीजन में फसलों की कटाई शुरू होने के साथ ही मार्च में यह घटकर 3.01 करोड़ रह गया है। पिछले वर्ष जून में मनरेगा के तहत काम मांगने वालों की संख्या 4.81 करोड़ तक पहुंच गई थी। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, देश के विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों और शहरी क्षेत्रों कारोबारी गतिविधियां शुरू होने की वजह से भी गांवों से मजदूरों का पलायन शहरों की ओर हो रहा है। काम मांगने वालों की संख्या में सीजन में उतार-चढ़ाव आता रहता है। बीते खरीफ सीजन में फसलों की कटाई शुरू होने की वजह से सितंबर और अक्टूबर में मनरेगा के तहत काम मांगने वालों की संख्या गिरकर 2.55 करोड़ रह गई थी। पिछले दो वर्षो के दौरान कोरोना का प्रभाव होने की वजह से श्रमिक गांवों की ओर लौट गए थे।
इसकी वजह से वहां मनरेगा में काम मांगने वाले श्रमिकों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ी थी। पिछले कुछ वर्षों के दौरान मनरेगा का बजट आवंटन एक लाख करोड़ रुपये को पार कर गया था। वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान यह 98,000 करोड़ रुपये था। जबकि चालू वित्त वर्ष 2022-23 के लिए मनरेगा के लिए 73,000 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया है। माना जा रहा है कि अन्य कारोबारी गतिविधियों के जोर पकड़ने मनरेगा में काम मांगने वालों की संख्या कम हो सकती है। इस बारे में सरकार ने स्पष्ट किया है कि मांग आधारित योजना होने की वजह से इसके लिए जरूरत पड़ने पर अतिरिक्त बजट का प्रविधान किया जा सकता है।

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