राष्ट्रीय

उच्च शिक्षण संस्थानों से खत्म होगा दाखिले का दबाव

अगले पांच सालों में करीब पचास फीसद तक बढ़ोतरी की तैयारी
नई दिल्ली। यूक्रेन-रूस युद्ध के चलते आने वाले दिनों में वैश्विक परिदृश्य कैसा होगा यह तो अभी भविष्य के गर्त में छुपा हुआ है लेकिन इसने पाबंदियों में जकड़े देश के उच्च शिक्षा के ढांचे को जरूर झकझोरा है। साथ यह सोचने के लिए विवश किया कि जब यूक्रेन जैसा देश दुनिया के दूसरे देशों के बच्चों को उच्च शिक्षा देने का एक मजबूत ढांचा खड़ा कर सकता है, तो फिर हम क्यों नहीं। खुद प्रधानमंत्री ने भी यह चिंता जाहिर की। आखिरकार इसका असर होता दिख रहा है। शिक्षा मंत्रालय ने विश्वविद्यालयों सहित दूसरे सभी उच्च शिक्षण संस्थानों से दाखिले के दबाव को खत्म करने की योजना पर काम शुरू कर दिया है।
आने वाले दिनों में सभी संस्थानों में छात्रों की मांग के मुताबिक पर्याप्त सीटें बढ़ाने की तैयारी है। शिक्षा मंत्रालय का इस दौरान फोकस इंजीनियरिंग, मेडिकल सहित ऐसे सभी कोर्सों को लेकर है, जिनकी देश व विदेश में भारी मांग है। साथ जिन कोर्सो में दाखिले को लेकर छात्रों का दबाव है। इनमें विश्वविद्यालयों व कालेजों में पढ़ाए जाने वाले वह सामान्य कोर्स भी शामिल है, जिसमें दाखिला न मिलने के चलते छात्र पढ़ाई छोड़ देता है। वैसे भी देश में इस समय उच्च शिक्षा का सकल नामांकन दर ( जीईआर) करीब 27 फीसद ही है। जिसे शिक्षा मंत्रालय ने वर्ष 2022 तक 30 फीसद और 2035 तक 50 फीसद पहुंचाने का लक्ष्य रखा है।
मंत्रालय से जुड़े वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक अगले 20 सालों को लक्ष्य कर उच्च शिक्षण संस्थानों में सीटों को बढ़ाने से जुड़ी योजना पर काम शुरू कर दिया है। इसके तहत अगले पांच सालों में ही मौजूदा सीटों के मुकाबले करीब पचास फीसद तक की बढ़ोतरी करने की तैयारी है। इसका जल्द ही ऐलान भी होगा। गौरतलब है कि यूक्रेन युद्ध के दौरान करीब 23 हजार फंसे भारतीय छात्रों को निकाला गया था। यह सभी वहां मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए गए है। इनमें ज्यादातर ऐसे छात्र थे, जिन्होंने यहां दाखिला न मिलने के चलते या फिर यूक्रेन में सस्ती पढ़ाई को देख वहां दाखिला लिया था। इतना ही नहीं, देश से हर साल लाखों की संख्या में छात्र उच्च शिक्षा के लिए विदेशों की ओर से रूख करते है। इनमें ज्यादातर ऐसे छात्र होते है, जो देश में अपने पसंदीदा विषयों में दाखिला नहीं मिल पाने के चलते ऐसे कदम उठाने को मजबूर होते है।
देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में दाखिले की समस्या कितनी भयावह है इसका अंदाजा जेईई और विश्वविद्यालयों के दाखिले को लेकर छात्रों की हर साल उमड़ने वाली भीड़ से लगाया जा सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक जेईई में हर साल करीब नौ लाख छात्र हिस्सा लेते है। लेकिन इनमें से सरकारी कालेजों में दाखिला करीब 50 हजार छात्रों को ही मिल पाता है। ऐसे में बाकी छात्रों के या तो महंगे कालेजों में दाखिला लेने का विकल्प होता है या फिर वह विदेशों का रूख कर लें। आर्थिक रूप से कमजोर छात्र तो पढ़ाई ही छोड़ देते है।

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