कोरोना वायरस का पता लगाने के लिए सीवर के पानी पर नजर
नई दिल्ली। देश में कोरोना संक्रमण के मामलों में लगातार गिरावट को देखते हुए इंडियन सार्स-सीओवी-2 जीनोमिक कंसोर्टियम यानी इंसाकाग ने सीवर के पानी की निगरानी शुरू कर दी है। पहले चरण में 15 राज्यों में 19 विभिन्न जगहों पर यह अभियान चलाया जा रहा है। इसका मकसद कोरोना संक्रमण का मुख्य कारक माने जाने वाले सार्स-सीओवी-2 वायरस का पता लगाना है।
टीकाकरण पर राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह (एनटागी) में कोरोना वर्किग ग्रुप के चेयरमैन डा. एनके अरोड़ा ने कहा, श्भारत में 15 से ज्यादा राज्यों में 19 जगहों पर सीवर के पानी की निगरानी शुरू हो गई है।श् इस अभियान को पर्यावरणीय निगरानी नाम दिया गया है। देश में पोलियो अभियान के दौरान भी इस तरह की निगरानी की गई थी। इंसाकाग ने यह भी स्पष्ट किया है कि देश में अभी तक कोरोना के ओमिक्रोन वैरिएंट के एक्सई सब वैरिएंट का कोई मामला नहीं मिला है। दो दिन पहले बृहन्मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) ने मुंबई में देश का पहला एक्सई का मामला मिलने का दावा किया था। डा. अरोड़ा ने से कहा, जब मामले कम होते हैं तो संवेदनशीलता बढ़ जाती है क्योंकि कोरोना के ज्यादातर मामले बिना लक्षण होते हैं। अगर कोई नया वैरिएंट उभरता है तो संवेदनशीलता बढ़ जाती है, भले ही मामलों की संख्या कम हो। पर्यावरणीय निगरानी से नए वैरिएंट के उभरने या किसी नए वैरिएंट के आबादी में फैलने का पता लगाने में मदद मिलती है। इसके अलावा किसी खास इलाके में होने वाले विशेष प्रकार के बदलाव का इससे पता लग जाता है।
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) के नेशनल इंस्टीट्यूट आफ वायरोलाजी (एनआइवी) की निदेशक डा. प्रिया अब्राहम ने कहा कि पर्यावरणीय निगरानी में खासकर सीवर के पानी के सैंपल की जांच की जाती है। यह कोरोना वायरस पर निगरानी रखने का अप्रत्यक्ष तरीका है। अगर सीवर के पानी में वायरस पाया जाता है तो इससे पता चलता है कि अभी संबंधित इलाके में कोरोना सक्रिय बना हुआ है।