उत्तराखण्ड

मासिक धर्म पर मानसिकता बदलने की जरूरतः डॉ. सुजाता संजय

देहरादून। विश्व मासिक धर्म दिवस का मुख्य उद्देश्य समाज को एक स्वस्थ्य संदेश देना है कि हमारी मां, बहनें व बेटियां कैसे स्वच्छ और स्वस्थ्य रहें। क्योंकि एक स्वस्थ्य महिला ही रहकर एक स्वस्थ्य समाज का निमार्ण कर सकती है। इस स्वच्छता एवं स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता का एक महत्वपूर्ण कदम है मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता। विश्व मासिक धर्म दिवस के अवसर पर सोसायटी फॉर हैल्थ एजुकेशन एंड वूमैन इम्पावरमेन्ट ऐवेरनेस सेवा द्वारा देहरादून के विभिन्न स्कूलों में जाकर बालिकाओं को मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता हेतु 110 से भी अधिक छात्राओं एवं शिक्षिकाओं को  जागरूक किया गया। इसके साथ ही मासिक धर्म की प्रक्रिया के दौरान ध्यान रखी जाने वाली स्वच्छता एवं बेटी बचाओं बेटी पढ़ाओं के बारे में जागरूक किया गया।
संजय ऑर्थोपीडिक, स्पाइन एवं मैटरनिटी सेंटर की स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. सुजाता संजय का मासिक धर्म दिवस में बालिकाओं को जागरूक करने का एक लक्ष्य माना जा सकता है कि उनके द्वारा किसी भी तरीके से बालिकाओं एवं किशोरियों को मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता के बारे में जागरूक करने की ठानी है। मासिक धर्म को स्त्री के शरीर की शुचिता के बोझ व कलंक से आजाद कर उसे इस नजरिए से देखा जाए कि मासिक धर्म तो प्रत्येक लड़की की जिंदगी का हिस्सा है, यह हर महिला के शरीर में होने वाला एक स्वाभाविक विकास है। यह लड़की की जिंदगी का ऐसा संक्रमण काल है कि इससे वह किशोरावस्था में प्रवेश करती है और फिर बालिग। यह सभी लड़कियों के जीवन में बदलाव का अहम वक्त होता है। ऐसे वक्त में उन्हें परिवार, सहेली, समुदाय, अध्यापक, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के उचित परामर्श, जानकारी की सख्त जरूरत होती है, ताकि वे विभिन्न भ्रंातियों के जाल में आने से बचें और मासिक धर्म के दारौन स्कूल मिस नहीं करें। भारत एक ऐसा मुल्क है, जहां किशोर लड़कियों की तादाद बहुत अधिक है। अनुमान सुझाते हैं कि भारत में करीब 110 मिलियन किशोर लड़कियों में मासिक धर्म स्वच्छता और उसके निस्तारण के ज्ञान की कमी है। ये उनकी शिक्षा व स्वास्थ्य को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करते हैं।
डॉ0 सुजाता संजय ने कहा, मासिक धर्म के प्रति जागरूकता जरूरी है क्योंकि यह माहवारी के दौरान चुप रहने की धारणा को तोड़ देगा और इस समय लड़कियों को सामान्य होने के लिए प्रोत्साहित करेगा। इससे अन्य अंतर-जुड़े किशोरायों से जुडे मुद्दों जैसे बाल विवाह, पोषण और शिक्षा के बारे में भी जागरूकता पैदा होगी। डॉ. सुजाता संजय ने बताया कि मासिक धर्म एक प्रक्रिया है, जो महिलाओें में 20 से 30 दिन पर आती है। जो 4 से 5 दिनों तक रहता है। हर लड़कियां जब 11 से 12 साल की होती है, तो उस समय इस चक्र के शुरूआत होने का समय आता है। यही समय है जब लड़कियों को इस संबंध में उचित सलाह देकर जागरूक किया जाए। परिणामस्वरूप वे मासिक चक्र के दौरान स्वच्छता बनाए रहे। इस जागरूकता में सबसे बड़ी भागीदारी उस घर की मां, बड़ी बहन एवं स्कूल की शिक्षिकाओं की होती है। मासिक के समय कैसे रहा जाए। क्या उपयोग किया जाए और क्या नहीं किया जाए। इन सब के प्रति सतर्क एवं सजग करना ही सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। इस संबंध में खुलकर आपस में बात होनी चाहिए और हम स्त्री रोग चिकित्सक का दायित्व है। मासिक धर्म के समय स्वच्छता बनाए रखे। मासिक के दौरान हमेशा सेनेट्री नेपकिन या साफ कपड़ा का उपयोग करें। दिन में दो बार बदले। उस कपड़े का दूबारा उपयोग ना करें। स्वच्छता नहीं रखने से उस दौरान बहुत सारा इन्फेक्शन/संक्रमण लगने का भय रहता है। जिससे पीआईडी और बच्चेदानी के नली और अंदरूनी भाग को छतिग्रस्त करता है। महिलाएं बांझपन का शिकार हो सकती है और उन्हें संतान सुख से वंचित होने का भी डर रहता है। डॉ. सुजाता संजय ने कहा कि समाज में अंध विश्वास व्याप्त है कि मासिक आना एक अपवित्र चीज है। पर हकीकत यह है कि यह पवित्र चीज है, और हर स्त्री के जिंदगी का यह अहम हिस्सा है। यों कहिए यह स्त्रीत्व का प्रमाण है। इस दौरान अच्छे से साफ रहना चाहिए। स्नान करना चाहिए। उचित आहार लेना चाहिए, लड़कियों को स्कूल जाना चाहिए और रोजमर्रा का हर काम अन्य दिनों के तरह ही करना चाहिए। एक आंकड़े के अनुसार आज भी 28 प्रतिशत से ज्यादा किशोरियां मासिक धर्म के कारण स्कूल नहीं जाती है, महिलाओं को आज भी इस मुद्दे पर बात करने में झिझक होती है जबकि आधे से ज्यादा को तो ये लगता है कि मासिक धर्म कोई अपराध है। आजकल टीवी, इंटरनेट पर आज हर तरह की सामग्री मौजूद है जिसने लोगों की सोच मासिक धर्म के बारे में बदली है लेकिन अभी भी काफी लोग इस बारे में खुलकर बातें नहीं कर रहे हैं। लोगों को समझना होगा कि मासिक धर्म कोई अपराध नहीं है बल्कि प्रकृति की ओर से दिया गया महिलाओं को एक तोहफा है।

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