90 दिनों में निपटाए जाएं नेताओं के खिलाफ गंभीर अपराधों के मुकदमे
कर्नाटक हाई कोर्ट ने जारी किए दिशानिर्देश
बेंगलुरु। कर्नाटक हाई कोर्ट ने नेताओं और प्रभावशाली व्यक्तियों के खिलाफ आपराधिक मामलों के त्वरित निपटारे के लिए अंतरिम आदेश के जरिये 17 दिशानिर्देश जारी किए हैं। इनमें गंभीर अपराधों के लिए 90 दिनों की समयसीमा और शिकायतकर्ताओं की जिंदगी व हितों की रक्षा के लिए गवाह सुरक्षा योजना का क्रियान्वयन शामिल है।
जस्टिस एस. सुनील दत्त यादव ने छोटे-मोटे अपराधों के लिए 60 दिन और गंभीर व जघन्य अपराधों के लिए 90 दिनों की समयसीमा तय की है। हालांकि, इस समयसीमा को मजिस्ट्रेट और जज बढ़ा सकते हैं, अगर जांच एजेंसी वैध कारणों के साथ इसकी मांग करे। अन्य दिशानिर्देशों में हाई कोर्ट ने कहा कि जांचकर्ता पुलिस को आरोपित द्वारा जांच में किए जा रहे किसी भी तरह के हस्तक्षेप और जांच में आ रही किसी भी तरह की अड़चन की जानकारी मजिस्ट्रेट को देनी चाहिए। इसमें विशेषज्ञ जांच शाखा की स्थापना और कर्मियों को आवश्यक प्रशिक्षण देने की बात भी कही गई है।
हाई कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार विशेष अदालतों में सक्षम लोक अभियोजक नियुक्त करे जो ऐसे मामलों से निपटने में सक्षम हों। अदालत ने कर्नाटक में उपलब्ध असुरक्षित गवाह पेशी परिसरों की सूची भी तलब की। साथ ही कहा कि राज्य सरकार को जल्द से जल्द दूसरी विशेष अदालत की स्थापना को स्वीकृति देनी चाहिए। हाई कोर्ट ने सुजीत मुलगुंड नामक व्यक्ति की याचिका पर 17 मई को यह आदेश जारी किया। याचिका में सुजीत ने बेलगाम दक्षिण सीट से दो बार के विधायक अभय कुमार पाटिल के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं। सुजीत ने पाटिल की आय से अधिक संपत्तियों की जांच कराने की मांग की है।
याचिका में उन्होंने यह आरोप भी लगाया है कि शिकायत दर्ज कराने के समय से ही उन्हें जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं और उन्हें लगातार प्रताड़ित किया जा रहा है। पाटिल के गुर्गे उन्हें कथित तौर पर प्रताड़ित कर रहे हैं और शिकायत वापस लेने का दबाव डाल रहे हैं। मामले में अत्याधिक देरी का हवाला देते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि शिकायत 2012 में दर्ज कराई गई थी, लेकिन पुलिस ने अभी तक आरोपपत्र दाखिल नहीं किया। अब मामले की जांच भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी), बेलगावी के पास है।