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देश में समान नागरिक संहिता की तैयार होने लगी जमीन, भाजपा शासित राज्यों में इसे लागू करने के संकेत

नई दिल्ली। समान नागरिक संहिता की चर्चा अब हकीकत की जमीन पर उतरने लगी है। इस मामले में केंद्र सरकार के लिए आधी जंग जीतना बहुत आसान है। भाजपा शासित राज्य गोवा अभी एक मात्र राज्य है, जहां समान नागरिक संहिता लागू है। अब उत्तराखंड ने इस दिशा में कदम बढ़ाया है और समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत न्यायाधीश की अध्यक्षता में विशेषज्ञ समिति गठित की है। मध्य प्रदेश, कर्नाटक आदि भाजपा शासित राज्य इसे लागू करने के संकेत दे रहे हैं।
इस समय 18 राज्यों में भाजपा की अपने दम पर या सहयोगी के तौर पर सरकार है। अगर भाजपा अपने सहयोगियों को मनाने में सफल हो गई और इन राज्यों ने इसे लागू करना शुरू कर दिया तो देश के आधे से ज्यादा हिस्से में सभी नागरिकों के लिए समान कानून की संहिता लागू हो जाएगी। संविधान के नीति निदेशक तत्व का अनुच्छेद 44 कहता है कि राज्य पूरे भारत वर्ष में नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता प्राप्त करने का प्रयास करेगा। समान नागरिक संहिता का मुद्दा कोई नया नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट भी कई बार समान नागरिक संहिता की बात चुका है। अभी भी सुप्रीमकोर्ट और हाईकोर्ट में यह मुद्दा लंबित है। भाजपा के एजेंडे में तो यह बहुत पहले से शामिल है। इस समय केंद्र सरकार के स्तर पर भी इसे लेकर गहमागहमी तेज हो गई है। समान नागरिक संहिता का मतलब है कि देश के सभी नागरिक चाहें वे किसी भी धर्म के हों, उनके लिए विवाह, तलाक, भरण पोषण, विरासत व उत्तराधिकार, संरक्षक, गोद लेना आदि के बारे में समान कानून होगा।
अभी इस बारे में सभी धर्मों के अलग- अलग कानून, पर्सनल ला हैं। हिन्दुओं का कानून संहिताबद्ध कर दिया गया है लेकिन मुसलमानों में ऐसे मामले शरीयत या पर्सनल ला के मुताबिक तय होते हैं। इन कानूनों में लिंग आधारित समानता भी नहीं है। समान नागरिक संहिता लागू होने से सभी तरह का भेदभाव समाप्त हो जाएगा और सभी धर्मों के अनुयायियों के लिए ऐसे मामलों में समान कानून लागू होगा।

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