उत्तराखंड हाईकोर्ट ने हरिद्वार में गंगा किनारे व अन्य जगहों से कुष्ठ रोगियों को हटाए जाने के खिलाफ़ जनहित याचिका पर की सुनवाई
नैनीताल। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने हरिद्वार में गंगा किनारे व अन्य जगहों से कुष्ठ रोगियों को हटाए जाने के खिलाफ़ संज्ञान लिए जाने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई की। मामले को सुनने के बाद मुख्य न्यायधीश विपिन सांघी व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खण्डपीठ ने हरिद्वार जिला विकास प्राधिकरण व जिला अधिकारी को निर्देश दिए हैं कि कुष्ठ रोगियों के विस्थापन के लिए भूमि का चयन कर रिपोर्ट कोर्ट में पेश करें। कोर्ट ने कुष्ठ रोग उन्मूलन अधिकारी को नोटिस जारी कर पूछा है कि कुष्ठ रोगियों के उत्थान के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये गए दिशा निर्देशों का कितना पालन किया गया है। इनके उत्थान के लिए जारी केंद्र सरकार के बजट का कैसे उपयोग किया जा रहा है। इसकी रिपोर्ट कोर्ट में चार सप्ताह के भीतर पेश करें। मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद कि तिथि नियत की है। मामले के अनुसार देहरादून के एनजीओ एक्ट नाव वेलफ़ेयर सोसाइटी ट्रस्ट ने मुख्य न्यायाधीश को पूर्व में पत्र भेजा था। जिसमें कहा गया था कि सरकार ने पिछले दिनों हरिद्वार में गंगा नदी के किनारे व अन्य स्थानों से अतिक्रमण हटाने के दौरान यहां बसे कुष्ठ रोगियों को भी हटा दिया था। अब इनके पास न घर है, न रहने की कोई व्यवस्था। भारी बारिश में कुष्ठ रोगी खुले में जीवन व्यतीत कर रहे हैं। खंडपीठ ने इस पत्र को जनहित याचिका के रूप में स्वीकार किया था। पत्र में कहा गया कि 2018 में राष्ट्रपति के दौरे के दौरान तत्कालीन जिला अधिकारी ने चंडीघाट में स्थित गंगा माता कुष्ठ रोग आश्रम के साथ साथ उनके अन्य आश्रमों को भी तोड़ दिया था जिससे वे आश्रम विहीन हो गए। जबकि गंगा माता कुष्ठ रोग आश्रम के आस पास अन्य सात बड़े कुष्ठ रोग आश्रम भी हैं जिन्हें नही तोड़ा गया क्योंकि ये उच्च राजनैतिक प्रभाव वाले व्यक्तियों के है। सरकार सुप्रीम कोर्ट के द्वारा जारी दिशा निर्देशों का पालन नही कर रही है। जिसमे कहा गया है कि सरकार उनका पुनर्वास करे, उनको मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराएं और उनका खर्चा स्वयं वहन करें।