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उत्तराखंड विधानसभा से बर्खास्त कर्मचारियों को सुप्रीम झटका, कोर्ट ने विशेष याचिका (SLP) को किया खारिज, स्पीकर  ऋतु खंडूड़ी के फैसले को ठहराया  सही

बर्खास्त कर्मचारियों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर विशेष अनुग्रह याचिका (एसएलपी) पर हुई सुनवाई

पूर्व में नैनीताल हाई कोर्ट  ने भी विधानसभा सचिवालय के आदेश को ठहराया था सही
देहरादून। विधानसभा भर्ती घोटाले में बर्खास्त किए गए कर्मचारियों को सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नहीं मिल पाई है। बर्खास्त कर्मचारियों द्वारा हाइकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने विशेष याचिका को खारिज कर दिया है। इस फैसले से कर्मचारियों को बड़ा झटका लगा है। शुक्रवार को याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष के फैसले को सही ठहराया है। इससे पहले नैनीताल हाईकोर्ट ने भी विधानसभा कर्मचारियों को बर्खास्त करने के विधान सभा सचिवालय के आदेश को सही ठहराया था।
विधानसभा में 228 कर्मचारियों की तदर्थ नियुक्ति पर विधानसभा अध्यक्ष ने जांच कर इन सभी 228 कर्मचारियों की सेवाएं बर्खास्त करने का आदेश दिया था। जिसे हाईकोर्ट में कर्मचारियों द्वारा चुनौती दी गई थी। लेकिन हाईकोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष के फैसले को सही    ठहराया था। बर्खास्त कर्मचारियों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर विशेष अनुग्रह याचिका (एसएलपी) को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया , जिसके बाद बर्खास्त कर्मचारियों को बड़ा झटका लगा है।
उत्तराखंड विधानसभा सचिवालय की तरफ से पैरवी कर रहे अधिवक्ता अमित तिवारी ने कहा  कि वर्ष 2021 में विधानसभा में तदर्थ रूप से नियुक्त हुए 72 कर्मचारियों की एसएलपी  सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच के न्यायाधीश हृषिकेश रॉय और न्यायाधीश मनोज मिश्रा ने सुना। जिसके बाद डबल बेंच ने मात्र डेढ़ मिनट में ही एसएलपी को खारिज कर दिया और उत्तराखंड विधानसभा सचिवालय के फैसले को सही ठहराया ।
ज्ञात हो कि विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी ने तदर्थ नियुक्तियों के खिलाफ कड़ा कदम उठाया था। इस फैसले में 2016 से 2021 तक की तदर्थ नियुक्ति वाले 228 कर्मचारियों को जांच कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर बर्खास्त करने का आदेश दिया था। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि विधानसभा सचिवालय में 396 पदों पर बैक डोर नियुक्तियां 2001 से 2015 के बीच हुई , जिनको नियमित किया जा चुका है ।याचिका में कहा गया था कि 2014 तक तदर्थ नियुक्त कर्मचारियों को 4 वर्ष से कम की सेवा में नियमित नियुक्ति दे दी गई ,लेकिन उन्हें 6 वर्ष के बाद भी नियमित नहीं किया गया और अब उन्हें हटा दिया गया।

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