भारत सहित दुनिया भर में ताजे पानी की हर तीसरी मछली पर मंडरा रहा विलुप्त होने का खतरा
ई दिल्ली। नदियां, झीलें और वेटलैंड पृथ्वी के सबसे अधिक जैव विविधता वाले क्षेत्र होते हैं। वह धरती की कुल सतह के एक प्रतिशत से भी कम हिस्से को कवर करते हैं पर वह एक चैथाई से अधिक कशेरूकी प्रजातियों का घर होते हैं। इसमें दुनिया भर की आधी मछली की प्रजातियों का आशियाना होते हैं। पर इन ताजे पानी की मछलियों के अस्तित्व पर संकट बढ़ रहा है। द वर्ल्डस फॉरगॉटन फिशेस की हाल में आई रिपोर्ट ताजे पानी की मछलियों पर आई विपत्ति की दास्तां बताती है।
रिपोर्ट के अनुसार भारत सहित दुनिया भर में ताजे पानी की हर तीसरी मछली पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। रिपोर्ट के अनुसार नदियों और वेटलैंड का गंदा होना, सिंचाई के लिए अधिक पानी का प्रयोग, बिना शोधित वेस्ट पानी को नदियों में प्रवाहित करना, क्लाइमेट चेंज आदि का परिवर्तन भी इसके लिए दोषी है। 1970 से प्रवासी फ्रेशवाटर मछलियों की आबादी में 76 फीसत की कमी आई है। फ्रेशवाटर मेगा-फिशेज (30 किलोग्राम से अधिक वजन वाली) में 94 प्रतिशत की कमी आई है।
भारत के गंगा नदी बेसिन को ही देखें तो यहां रहने वाली आधी से अधिक आबादी गरीबी का शिकार है। यहां की बड़ी आबादी पोषण के लिए इन मछलियों पर ही निर्भर है, लेकिन पिछले 70 वर्षों में इस नदी पर बढ़ते दबाव के चलते यहां की मछलियों की आबादी में काफी कमी आई है। इसमें सबसे ज्यादा कमी हिल्सा में देखी गई है। वहां फरक्का बांध के निर्माण के बाद इन मछलियों पर व्यापक असर पड़ा है। 43 फीसदी मीठे पानी की मछलियां उन 50 कम आय वाले देशों में पकड़ी जाती हैं जो पहले ही खाद्य सुरक्षा का संकट झेल रहे हैं।
2018 के आंकड़ों के अनुसार सिर्फ 16 देशों से 80 फीसदी मछली पकड़ी गई। इनमें से दो तिहाई एशिया से थी। इनमें भारत, चीन, बांग्लादेश, म्यांमार, कंबोडिया और इंडोनेशिया थे। वहीं अफ्रीकी देशों से 25 फीसदी मछली पकड़ी गई। इनमें युगांडा, नाइजीरिया, तंजानिया, मिस्र और मालावी प्रमुख देश थे। इंटरनेशनल फिशरीज इंस्टीट्यूट और एफएओ की रिपोर्ट के अनुसार 50 फीसद से अधिक ग्लोबल फ्रेशवाटर फिश सात रिवर बेसिन से पकड़ी गई थी। ये मैकांग, नील, यांगेज, इराब्दी, ब्रह्मपुत्र, अमेजन और गंगा का बेसिन था।