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भाजपा ने कांग्रेस की दिल्ली बैठकों पर  कसा तंज , प्रदेश प्रवक्ता विनोद सुयाल बोले , कांग्रेस के लोकल नेताओं की जनता और आलाकमान, दोनों की नजरों में कोई अहमियत नही

राहुल गांधी के उत्तराखंड आने के दावों पर किया
व्यंग, कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी को राज्य में आने की फुर्सत नहीं,
कहा, ऐसा ना हो कांग्रेस की यहां की रैलियां भी  दिल्ली में होती नजर आएं
देहरादून । भाजपा ने कांग्रेस की दिल्ली बैठकों पर तंज  कसते हुए कहा कि इनके लोकल नेताओं की जनता और आलाकमान, दोनों की नजरों में कोई अहमियत नही है। साथ ही राहुल गांधी के उत्तराखंड आने के दावों पर भी व्यंग किया कि इनके प्रदेश प्रभारी को तो राज्य में आने की फुर्सत नही है और बैठक के लिए भी दिल्ली बुलाते हैं । हो न हो आगे कांग्रेस की यहां की रैलियां भी दिल्ली होती नजर आएं ।
भाजपा प्रदेश प्रवक्ता विनोद सुयाल  ने  कहा कि दिल्ली की उनकी बैठक, आलाकमान की नजर में स्थानीय नेताओं की कमतर अहमियत को दर्शाता है। साथ ही तंज किया कि जिनके प्रभारी को भी राज्य में बैठक लेने के लिए आने की फुर्सत नहीं हो ,वो अपने युवराज के आने का ढोल एक बार पुनः पीटने लगे हैं । इससे पहले भारत जोड़ो यात्रा में आने का शोर मचाते रहे, फिर न्याय यात्रा में एक माह रहने का दावा किया, दोबारा भारत जोड़ो न्याय यात्रा की चर्चा करवाकर भी नहीं आए । इस दौरान आम चुनाव भी बीते और आपदा का सामना भी प्रदेश ने किया लेकिन इनके शीर्ष नेता को समय नहीं मिला। अब फिर सितंबर में आने की हवाई घोषणा, जबकि उत्तराखंड की जनता को इनके आलाकमान की मंशा और इनके आलाकमान को राज्य में अपनी राजनैतिक हैसियत का बखूबी अहसास है। फिलहाल सच्चाई यह कि उनके राजनैतिक पर्यटन पर आने जाने से कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है। साथ ही सुयाल ने  कटाक्ष किया कि लोकल कांग्रेस नेताओं का छोटी छोटी बैठक के लिए भी दिल्ली भागने पर उन्हें अब तरस आता है। ये वही नेता हैं जो अपने को जनता के सामने एक से बढ़कर एक नेता बताते हैं और उससे भी बड़े वादे जनता से करते हैं । लेकिन अफसोस इन वादों को पूरा करना तो दूर इनकी एहमियत इतनी भी नहीं है कि ये अपने प्रभारी को राज्य में बुला पाएं। सच्चाई यह है कि प्रदेश में कांग्रेसी न तो किसी को अपना प्रदेश अध्यक्ष स्वीकारते हैं और न ही उनका आलाकमान अपने नेताओं को कुछ समझता है । यही वजह है कि निकाय पंचायत चुनाव, संगठन विस्तार जैसे राज्य के मुद्दों को लेकर भी उन्हें दिल्ली में चर्चा करनी पड़ रही है। अब तो आने वाले दिनों में उत्तराखंड कांग्रेस की रैलियां भी दिल्ली में होंगी। फिलहाल राज्य की जनता भली-भांति समझ गई है कि जिन्हे उनका आलाकमान ही गंभीरता से नहीं लेता हो, वे राज्य के मुद्दों की पैरवी वहां कैसे करेंगे?

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