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बड़ी कामयाबी: दून अस्पताल में पहली बार किया गया चार माह के  अब्दुल्ला का मोतियाबिंद का लैंस प्रत्यारोपण से सफल ऑपरेशन , टॉर्च की लाइट को देखकर दी प्रतिक्रिया

बच्चों की दोनों आंखों में जन्म से ही था मोतियाबिंद
के जगह से मायूसी मिलने के बाद बच्चे के माता-पिता पहुंचे दून अस्पताल,
ऑपरेशन के बाद टॉर्च की लाइट को देखकर बच्चा हुआ खुश,
डॉ सुशील ओझा और उनकी टीम को चिकित्सा शिक्षा निदेशक डॉ आशुतोष सयाना  ने दी मुबारकबाद

एस.आलम अंसारी 
देहरादून। चिकित्सा और स्वास्थ्य क्षेत्र में हर दिन कुछ ना कुछ नया होता है। इसे ही हम मेडिकल साइंस का मैजिक कहते हैं। दून अस्पताल  में एक ऐसे ही कार्य को अंजाम दिया गया , जब  अस्पताल में पहली बार  चार माह के बच्चे का मोतियाबिंद का  लेंस प्रत्यारोपण के साथ सफल ऑपरेशन किया गया। बच्चे की दोनों आंखों में जन्म से ही सफेद मोतियाबंद था। रुड़की के अलावा और एम्स (लंबी तारीख) जैसे अस्पताल में भी जब परिजनों को मायूसी मिली तो वे बच्चे को लेकर दून अस्पताल पहुंचे, यहां बच्चे की सफल सर्जरी की गई। ऑपरेशन के बाद बच्चा टॉर्च की लाइट को देखकर खुश हो रहा है।
यूनिट 2  नेत्र रोग विभाग की टीम ने बताया कि रुड़की में रहने वाला अब्दुल्ला चार महीने का है। उसके पिता मारूफ ने प्राइवेट में इलाज में पैसे की कमी के कारण असुविधा  जाताई ।
उसके परिजनों ने चिकित्सकों को बताया कि अब्दुल्ला जब दो महीने का था तो उन्हें महसूस हुआ कि अब्दुल्ला किसी भी वस्तु को देखकर कोई प्रतिक्रिया नहीं देता था। चिंतित परिजनों ने शुरुआत में रुड़की में ही डॉक्टरों को दिखाया, तो जांच में पता चला कि अब्दुल्ला को सफेद मोतियाबिंद है। प्राइवेट हॉस्पिटल में  खर्चा लगभग 80000 ₹ बताया गया तो उन्होंने असमर्थता जाताई |
इसके बाद परिजन उसे लेकर एम्स ऋषिकेश पहुंचे, यहां भी सफेद मोतियाबिंद होने की बात कही गई।
जहां   लंबी तारीख मिलने पर परिजन उसे लेकर दून अस्पताल आए।  यहां अब्दुल्ला पुत्र मारूफ का  राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम  से मुफ्त में ऑपरेशन के लिए पंजीकरण कराया गया |
यहां गुरुवार को अब्दुल्ला की लेंस प्रत्यारोपण के साथ पहला सफल ऑपरेशन हुआ | ज्यादातर केस में लेंस प्रत्यारोपण के लिए उमर बढ़ने पर सर्जरी की जाती है.
ऑपरेशन के समय व्हाइट टू व्हाइट  डायमीटर ठीक होने पर उसी सिटिंग में लेंस प्रत्यारोपण किया गया |
यूनिट 2 की टीम से मिली जानकारी के अनुसार  सर्जरी के अगले दिन जब अब्दुल्ला की पट्टी खोलकर उसको टॉर्च की लाइट दिखाई गई तो उसे देखकर उसने प्रतिक्रिया दी | पिता मारूफ व उसकी माता खुशी से रोने लगी | सभी डॉक्टर का दिल से आभार जताया ।
उन्होंने बताया कि अभी अब्दुल्ला को निगरानी में रखा गया है।यूनिट 2  नेत्र रोग विभाग  की टीम   में प्रोफेसर डॉ. सुशील ओझा,  असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. दुष्यंत उपाध्याय, असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. नीरज सारस्वत,
डॉ. अनंता रैना, डॉ. गौरव कुमार, डॉ. ईशान सिंह, डॉ सुमन, विजयलक्ष्मी, शैलेश का योगदान रहा।  एनेस्थीसिया विभाग से डॉ निधि गुप्ता , डॉ विपाशा मित्तल ने सहयोग किया । इतनी कम उम्र में  एनेस्थीसिया का चुनौती पूर्ण कार्य कराया ।
निदेशक प्रोफेसर( डॉक्टर) आशुतोष   सयाना ; प्राचार्य प्रोफेसर गीता जैन ; विभाग अध्यक्ष प्रोफेसर शांति पांडे; प्रोफेसर अनुराग अग्रवाल और डीएमएस डॉ धनंजय ने टीम को बधाई दी |

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