राष्ट्रीय

सुप्रीम कोर्ट की ओर से नियुक्त समिति ने तीनों कृषि कानूनों को बताया फायदेमंद

नई दिल्ली।  जिन तीन कृषि सुधार कानूनों के विरोध में राष्ट्रीय राजधानी की घेराबंदी कर कुछ संगठन सालभर तक धरने पर बैठे रहे, 85 प्रतिशत किसान संगठन उन कानूनों को रद करने के पक्ष में नहीं थे। इन कानूनों की समीक्षा करने और उस पर सभी पक्षों की राय जानने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति के एक सदस्य ने यह दावा किया है। उनका कहना है कि समिति भी कानूनों को पूरी तरह से रद करने के पक्ष में नहीं थी और उसमें सुधार के लिए कुछ सुझाव दिए थे, जिसमें विशेष कीमत पर फसलों की खरीद राज्यों पर छोड़ने और आवश्यक वस्तु अधिनियम को रद करना शामिल था।
तीन सदस्यीय समिति की रिपोर्ट जारी करते हुए उसके एक सदस्य और पुणे के किसान नेता अनिल घनवट ने कहा कि कानूनों को रद किए जाने पर ज्यादातर किसान संगठनों ने निराशा जताई है। घनवट ने कहा कि उन्होंने रिपोर्ट सार्वजनिक करने के लिए सुप्रीम कोर्ट को तीन बार पत्र लिखा था, लेकिन कोई जवाब नहीं मिलने का बाद वह स्वयं इसे जारी कर रहे हैं। रिपोर्ट जारी करते समय प्रेस कांफ्रेंस में समिति दो अन्य सदस्य कृषि अर्थशास्त्री व कृषि लागत व मूल्य आयोग के पूर्व चेयरमैन अशोक गुलाटी और इंटरनेशनल फूड पालिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के निदेशक डा. प्रमोद कुमार जोशी उपस्थित नहीं थे।
समिति ने तीनों कृषि कानूनों में कुछ सुधार के सुझाव के साथ सुप्रीम कोर्ट को अपनी रिपोर्ट 19 मार्च, 2021 को सौंपी थी। समिति ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को लीगल करने का अधिकार राज्यों को सौंपने की सिफारिश की थी। यह भी कहा था कि एमएसपी को कानूनी रूप देने की किसान संगठनों की मांग तार्किक नहीं है और उसे लागू करना भी मुश्किल है। समिति ने कहा था कि अभी जो 23 फसल एमएसपी के दायरे में हैं उन्हीं की खरीद के लिए सरकार के पास पैसे नहीं हैं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button