राष्ट्रीय

कीटों के हमले से 80 फीसद मिर्ची फसल चौपट

उपभोक्ताओं को भी सता रही लाल मिर्च की कमी
नई दिल्ली। हाल के वर्षों में शायद यह पहली बार होगा, जब मिर्च की फसल को भी तेज मिर्ची लगी है। इसका पहला असर मिर्च उत्पादक किसानों और फिर उपभोक्ताओं को उठाना पड़ रहा है। मिर्च की फसल पर अजीब तरह के कीटों का हमला होने से उसे भारी नुकसान हुआ है। उन कीटों की जांच पड़ताल करने, उसे पहचाने और उससे पैदा होने वाली मुश्किलों का समाधान तलाश रहे कृषि वैज्ञानिक जब तक कुछ समझ पाते, उससे पहले ही खेतों में खड़ी मिर्च की फसल का 80 फीसद तक नुकसान हो गया। मिर्च उत्पादन में 55 फीसद अधिक हिस्सेदारी तेलंगाना और आंध्र प्रदेश की है, जहां भारी क्षति हुई है। कृषि मंत्रालय ने माना है कि मिर्च की फसल जिन कीटों का हमला हुआ वे दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के आए थे। मिर्च की फसल सामान्य तौर पर जिन रोगों व कीटों का प्रकोप होता है, उन्हें मारने वाले कीटनाशकों का थ्रिप्स नामक इन कीटों पर कोई असर नहीं हुआ। लिहाजा इंडियन काउंसिल आफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (आइसीएआर) के वैज्ञानिकों के साथ प्लांट प्रोटेक्शन, क्वारंटाइन एंड स्टोरेज और राज्य बागवानी और कृषि विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों की कई टीमें मौके पर दौड़ाई गईं। लेकिन निदान व जांच व इलाज शुरु होते-होते मिर्च की नाजुक फसलें सूखने लगीं। आइसीएआर के डायरेक्टर जनरल डाक्टर टी. महापात्र ने बताया कि मिर्च की फसल को बचाने की कोशिश की गई। लेकिन कीटों का प्रकोप होने के बाद किसानों ने पेस्टीसाइड का अंधाधुंध प्रयोग किया, जिससे फसल को दोहरा नुकसान हुआ। उन्होंने बताया कि इस तरह के कीटों के बचाव में फसलों के आसपास कुछ प्राकृतिक कीट होते हैं। लेकिन इस बार मिर्च पर लगे थ्रिप्स कीटनाशकों के विरुद्ध वे प्रभावकारी नहीं हो सके।
गुंटूर की मंडी में सूखी लाल मिर्च का भाव वर्ष 2021 के मार्च के अंतिम सप्ताह में जहां 9500 रुपए प्रति क्विंटल था, वह वर्ष 2022 की उसी अवधि में बढ़कर 17000 रुपए पहुंच गया है। राजस्थान के जोधपुर में पिछले साल 12 हजार रुपए प्रति क्विंटल वाली सूखी लाल मिर्च इस बार 21 हजार रुपए तक पहुंच गई है। जबकि उत्तर प्रदेश की मंडियों में भाव पिछले साल के मुकाबले 30 से 40 फीसद तक बढ़ा है। लाल मिर्च का निर्यात बाजार भी है, जो प्रभावित हो सकता है। घरेलू बाजारों में लाल मिर्च की यह तेजी अगली फसल के आने तक बनी रह सकती है।

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