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दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं पर नियंत्रण को लेकर केंद्र की सुप्रीम कोर्ट में अपील, कहा- मुद्दे को समग्र व्याख्या के लिए संविधान पीठ के पास भेजे

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं पर नियंत्रण के विवादित मुद्दे को समग्र व्याख्या के लिए संविधान पीठ के पास भेजा जाना चाहिए। मुख्य न्यायाधीश एनवी रमणा की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष केंद्र की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि संविधान पीठ को भेजे गए 2017 के आदेश को महज पढ़ने से ही यह समझा जा सकता है कि संदर्भ की शर्तों के लिए अनुच्छेद 239एए के सभी पहलुओं की व्याख्या की आवश्यकता है।
मेहता ने पीठ से कहा, उक्त संदर्भ का संवैधानिक महत्व इस तथ्य से पता चलता है कि दिल्ली के लिहाज से विधायिका और मंत्रिपरिषद के लिए संविधान के 69ए संशोधन के माध्यम से अनुच्छेद 239एए लागू किया गया। इस तथ्य के मद्देनजर इसका महत्व और बढ़ जाता है कि दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी भी है और दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीटी) के शासन माडल में स्थायी रूप से केंद्र सरकार को केंद्रीय भूमिका निभानी होगी, भले ही विधानसभा या मंत्रिपरिषद हों।
पीठ में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली भी शामिल थीं। मेहता ने पीठ से कहा, इस वजह से अन्य केंद्र शासित प्रदेशों के लिए प्रदत्त शासन के माडल को दिल्ली एनसीटी के लिए उचित नहीं समझा जाता है। उन्होंने कहा कि एक उचित शासन माडल सुझाने के लिए बालकृष्णन समिति का गठन किया गया था जो केंद्र की भूमिका की जरूरत को संतुलित कर सकती है। साथ ही जनता की लोकतांत्रिक आकांक्षाओं को मंच प्रदान कर सकती है।
सालिसिटर जनरल ने दलील दी कि दिल्ली एनसीटी की विधानसभा के विधायी अधिकारों के संबंधों में सूची दो की प्रविष्टि 41 को लेकर विवादों पर निर्णय को रोकने वाले विषय पर जब तक इतने या अधिक न्यायाधीशों की पीठ फैसला नहीं करती, विवाद पर प्रभावी तरीके से निर्णय नहीं लिया जा सकता।

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