सुप्रीम कोर्ट का फैसला- यदि स्त्री पुरुष वर्षों पति पत्नी की तरह साथ रहते हैं तो माना जाता है कि उनकी शादी हुई
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने संपत्ति विवाद के एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा है कि यह तय व्यवस्था है कि अगर स्त्री पुरुष वर्षों पति पत्नी की तरह साथ रहते हैं तो माना जाता है कि उनकी शादी हुई है। हालांकि इस अवधारणा का खंडन किया जा सकता है लेकिन फिर खंडन करने वाले पर जिम्मेदारी होती है कि वह साबित करे कि उनकी शादी नहीं हुई है। कोर्ट ने संपत्ति बंटवारा कर आधा हिस्सा मांग रहे याचिकाकर्ता की याचिका स्वीकार करते हुए केरल हाई कोर्ट का आदेश रद कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को संपत्ति में हिस्सा देने का ट्रायल कोर्ट का आदेश बहाल किया। हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता को संपत्ति में हिस्सा देने का ट्रायल कोर्ट का आदेश यह कहते हुए रद कर दिया कि इस बात का कोई सुबूत नहीं है कि याचिकाकर्ता के माता पिता (दामोदरन और चिरुथाकुट्टी) लंबे समय तक साथ-साथ रहे। दस्तावेजों से सिर्फ यह साबित होता है कि वह (याचिकाकर्ता) दामोदरन का पुत्र है, लेकिन वह वैध पुत्र नहीं है, इसलिए हाई कोर्ट ने संपत्ति बंटवारे से इन्कार कर दिया था।
याचिकाकर्ता ने बाद में इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की। जस्टिस एस.अब्दुल नजीर और जस्टिस विक्रमनाथ की पीठ ने सोमवार को दिए फैसले में याचिकाकर्ता कत्तूकंडी इदाथिल कृष्णन की अपील स्वीकार करते हुए कहा कि यह तय व्यवस्था है कि अगर स्त्री पुरुष बहुत वर्षों तक पति पत्नी की तरह साथ रहते हैं तो उनके विवाहित होने की अवधारणा होती है। हालांकि अवधारणा का खंडन हो सकता है लेकिन जो उस रिश्ते को नकारता है उस पर यह साबित करने की जिम्मेदारी होती है कि उनकी शादी नहीं हुई।
सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में पूर्व के कई फैसलों को उद्धृत किया जिसमें यह बात दोहराई गई है। सुप्रीम कोर्ट ने संपत्ति में हिस्सा मांग रहे याचिकाकर्ता और मांग का विरोध कर रहे प्रतिवादी की ओर से ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट में पेश सबूतों का विश्लेषण करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता का कहना है कि दामोदरन और चिरुथाकुट्टी की शादी 1940 में हुई थी। 12 मई 1942 याचिकाकर्ता कृष्णनन का जन्म हुआ जिसके साक्ष्य पेश किए गए हैं।