उत्तराखण्डदेहरादून

दुःखदायी रामपुर तिराहा कांड: आखिर लंबा इंतजार हुआ खत्म, 30 साल बाद मिला पीड़ितों और उनके परिजनों को इंसाफ, 1994 में दिल्ली जाते समय उत्तर प्रदेश पुलिस ने की थी आंदोलनकारियों के साथ बर्बरता

अलग राज्य की मांग को लेकर चला था आंदोलन
2 अक्टूबर को दिल्ली जाते समय उत्तराखंड राज्य आंदोलन कार्यों के साथ यूपी पुलिस ने की थी बर्बरता,
लाठी चार्ज के साथ ही निहत्थे आंदोलनकारी पर यूपी पुलिस के जवानों ने चलाई थी गोलियां,
6 आंदोलनकारियों की हुई थी मौत, कई महिलाओं के साथ दुष्कर्म की भी घटना को दिया गया था अंजाम
एस.आलम अंसारी
देहरादून: देर से ही सही मगर आखिरकार  शर्मसार कर देने वाले मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा कांड में लगभग तीन दशक बाद फैसला आया है। इस मामले में भले ही लंबे समय बाद दो पीएसी के जवानों को आजीवन कारावास और 50-50 हजार के जमाने की सजा सुनाई गई हो, मगर इस मामले में इंसाफ का इंतजार कर रहे पीड़ितों को राहत जरूर मिली होगी।
उत्तराखंड में दो अक्टूबर को काले अध्याय के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन यूपी की तत्कालीन सरकार ने पृथक उत्तराखंड राज्य आंदोलन को कुचलने के लिए ऐसा हिंसक तरीका अपनाया था, जिसने ब्रिटिश काल की याद ताजा करा दी थी। यूपी पुलिस ने निहत्थे उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों पर मुजफ्फनगर के रामपुर तिराहे पर गोलियां बरसाई थी। पुलिस की गोलियों से 6 राज्य आंदोलनकारी शहीद हो गए थे। वहीं कई महिलाओं के साथ रेप तक किया गया था।
दरअसल, 1994 तक आते-आते पृथक उत्तराखंड राज्य आंदोलन की मांग तेज होने लगी थी। एक अक्टूबर की रात को बड़ी संख्या में उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी बसों में भरकर देहरादून से दिल्ली की तरफ कूच करने लगे थे, ताकी दिल्ली में वो अपनी मांगों को पुरजोर तरीके से उठा सकें, लेकिन तत्कालीन यूपी के मुख्यमंत्री  मुलायम सिंह यादव नहीं चाहते थे कि उत्तराखंड के राज्य आंदोलनकारी दिल्ली जाएं। हालांकि जब यूपी पुलिस उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों को देहरादून और हरिद्वार में रोकने में नाकाम रही, तो उन्होंने आंदोलनकारियों को रोकने के लिए मुजफ्फनगर जिले में बर्बर तरीका अपनाया।
बताया जाता है कि कोदा-झंगोरा खाएंगे, उत्तराखंड बनाएंगे के नारे का साथ एक अक्टूबर की रात को करीब 24 बसों में सवार उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों को मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे पर रोका गया, लेकिन उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी दिल्ली जाने की जिद पर अड़े हुए थे। कहा जाता है कि इस दौरान पुलिस और उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों के बीच अच्छी-खासी कहासुनी भी हुई। एक तरफ जहां पुलिस उन्हें आगे बढ़ने देना नहीं चाहती थी, वहीं दूसरी तरफ उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी दिल्ली जाने की ज़िद लगाए हुए बैठे थे। ऐसे में दोनों के बीच तकरार बढ़ती गयी। दो अक्टूबर के तड़के करीब तीन बजे के आसपास माहौल पूरी तरह के तनावपूर्ण हो गया।
आखिर में पुलिस ने उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों को रोकने के लिए लाठीचार्ज किया।आरोप है कि इस दौरान पुलिस ने फायरिंग भी की, जिसमें 6 राज्य आंदोलनकारियों की मौत हो गई थी। आरोप है कि इस दौरान कई महिलाओं के साथ रेप भी किया गया था।
रामपुर तिराहा कांड में दो दर्जन से अधिक पुलिसकर्मियों पर रेप, हत्या, छेड़छाड़ और डकैती जैसे कई मामले दर्ज हुए।  फायरिंग मामले में साल 2003 में तत्कालीन डीएम को भी नामजद किया गया था।  इस मामले की सुनवाई  फास्ट ट्रैक कोर्ट में चली। इस केस से जुड़े चार मुकदमों के ट्रायल के लिए सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक को अधिकृत किया गया ।पैरवी के लिए दो अधिवक्ताओं की कमेटी बनाई गई। सीबीआई ने रेप पीड़िता के कोर्ट में बयान भी दर्ज कराए । तीन दशक के लंबे इंतजार के बाद मुजफ्फरनगर कोर्ट में रामपुर तिराहा कांड  में पीएसी के दो सिपाहियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है अदालत ने दोनों सिपाहियों पर 50-50 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है।
कोर्ट के निर्णय से पीड़ितों और उनके परिजनों को मिली बड़ी राहत: सीएम धामी
देहरादून। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने रामपुर तिराहा कांड में पीएसी के दो सिपाहियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाने के फैसले पर कहा कि अदालत के निर्णय से पीड़ितों और उनके परिजनों को बड़ी राहत मिली है। उन्हें लंबे समय से इंसाफ का इंतजार था। मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा पर 2 अक्टूबर 1994 को आंदोलन के दौरान हमारे नौजवानों ,माताओ -बहनों के साथ बर्बरता पूर्ण बर्ताव किया गया। इसमें कई आंदोलनकारियों की शहादत हुई।  यह एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी। उन्होंने कहा कि आंदोलनकारियों की आशाओं और आकांक्षाओं को पूरा करना सरकार की प्राथमिकता और कर्तव्य है।

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