पति-पत्नी में कोई भी एक दूसरे से मांग सकता है भरण-पोषण, बांबे हाई कोर्ट ने निचली अदालत के आदेश पर लगाई मुहर
नई दिल्ली। पति पत्नी के बीच वैवाहिक विवाद में जब गुजारे भत्ते की बात आती है तो ज्यादातर भरण-पोषण पाने के अधिकार का आदेश पत्नियों के पक्ष में जाता है, लेकिन कानून में दोनों को एक दूसरे से गुजारा भत्ता मांगने और पाने का अधिकार है। बांबे हाई कोर्ट ने एक आदेश में तलाक होने के बाद पत्नी द्वारा पति को 3,000 रुपये महीने अंतरिम भरण पोषण के तौर पर देने के निचली अदालत के आदेश को सही ठहराया है। हाई कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा-25 के तहत पति पत्नी दोनों को एक दूसरे से भरण पोषण मांगने का अधिकार है। इतना ही नहीं, तलाक होने के बाद भी पति व पत्नी एक दूसरे से भरण पोषण दिलाने की मांग कर सकते हैं और कोर्ट इसका आदेश दे सकता है। कानून की इस व्याख्या ने भरण पोषण के कानूनी अधिकार को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है। बांबे हाई कोर्ट ने पत्नी की याचिका खारिज करते हुए निचली अदालत के दो आदेशों पर अपनी मुहर लगाई है। एक आदेश पत्नी द्वारा 3,000 रुपये महीने पति को गुजारा भत्ता देने का था और दूसरे में पत्नी द्वारा आदेश पर अमल नहीं किए जाने पर वह जिस स्कूल में पढ़ाती है वहां के प्रधानाचार्य को आदेश दिया गया था कि महिला के वेतन से प्रतिमाह 5,000 रुपये काटकर कोर्ट में भेजे जाएं। हाई कोर्ट ने दोनों आदेशों को सही ठहराते हुए मामले में दखल देने से मना कर दिया और महिला की याचिका खारिज कर दी।
महिला की ओर से जोर देकर कहा गया था कि उसका तलाक हो चुका है और तलाक की डिक्री 2015 में पारित हो चुकी है। ऐसे में पति उससे भरण पोषण की मांग नहीं कर सकता। लेकिन हाई कोर्ट ने यह दलील खारिज कर दी। हाई कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25 की व्याख्या करते हुए कहा कि पति या पत्नी कोई भी अर्जी दाखिल कर स्थायी भरण पोषण दिलाने की मांग कर सकता है और कोर्ट डिक्री पास करते वक्त या उसके बाद किसी भी समय ऐसी अर्जी पर भरण पोषण देने का आदेश दे सकता है। कोर्ट ने कहा कि कानून में कही गई लाइन श्उसके बाद किसी भी समयश् को सीमित अर्थ में नहीं लिया जा सकता और न ही कानून बनाने वालों की ऐसी मंशा हो सकती है। कोर्ट ने कहा कि अगर इसी धारा की उपधारा दो और तीन को देखा जाए तो उसमें कोर्ट को किसी भी समय बदली परिस्थितियों के मुताबिक आदेश में बदलाव करने का अधिकार है। हाई कोर्ट ने कहा कि धारा-25 सिर्फ तलाक की डिक्री तक सीमित नहीं है। डिक्री धारा-नौ में दाम्पत्य संबंधों की पुनर्स्थापना की हो सकती है, धारा-10 में ज्युडिशियल सेपरेशन की हो सकती है या फिर धारा-13 में तलाक की हो सकती है अथवा धारा-13बी में आपसी सहमति से तलाक की हो सकती है। तलाक को अगर छोड़ दिया जाए तो बाकी डिक्रियों में पक्षकार पति पत्नी ही रहते हैं। ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि तलाक के बाद पति या पत्नी ऐसी अर्जी नहीं दाखिल कर सकते। भरण पोषण के प्रविधान गुजारा करने में असमर्थ जीवनसाथी के लाभ के लिए हैं। इस धारा का इस्तेमाल पति या पत्नी में से कोई भी कर सकता है चाहे डिक्री धारा-नौ से लेकर 13 में किसी भी तरह की क्यों न पारित हुई हो, उस डिक्री से शादी टूट चुकी हो या बुरी तरह प्रभावित हुई हो। हाई कोर्ट ने कहा कि पति-पत्नी के बीच तलाक की डिक्री से धारा-25 के प्रविधान का दायरा सीमित नहीं किया जा सकता।