तीसरे पक्ष के कहने पर राजद्रोह कानून पर रोक लगाने से गलत नजीर होगी पेश
नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने राजद्रोह कानून आइपीसी की धारा 124ए पर रोक लगाने का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट में कहा कि यहां किसी अभियुक्त ने याचिका नहीं दाखिल की है बल्कि जनहित याचिका है जिस पर विचार हो रहा है कोर्ट को तीसरे पक्ष के कहने पर संज्ञेय अपराध वाले कानून पर रोक नहीं लगानी चाहिए इससे गलत नजीर पेश होगी। केंद्र सरकार की ओर से पक्ष रखते हुए सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कही।
जब मामला सुनवाई पर आया तो सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से कहा कि उन्होंने एक ड्राफ्ट नोट तैयार किया है जिसके आधार पर निर्देश दिये जा सकते हैं। इसके साथ ही मेहता ने कानून पर रोक लगाने का विरोध करते हुए कहा कि संज्ञेय अपराध में मामला दर्ज करने पर रोक लगाना ठीक नहीं होगा।
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के विनोद दुआ मामले में पिछले वर्ष दिये गए फैसले का उदाहरण देते हुए कहा कि उस फैसले में कोर्ट पहले ही व्यवस्था दे चुका है। मेहता ने कहा कि सरकार कानून के दुरुपयोग को लेकर कोर्ट की चिंताओं को समझती है ऐसे में इस धारा में मामला दर्ज करने से पहले वरिष्ठ अधिकारी की संतुष्टि होनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि पुलिस अधीक्षक (एसपी) रैंक के अधिकारी के संतुष्ट होने और संतुष्टि को लिखित तौर पर दर्ज करने पर ही धारा 124ए में केस दर्ज होना चाहिए। इस कानून के तहत लंबित मामलों के बारे में मेहता ने कहा चूंकि ये संज्ञेय अपराध है और देश भर में हर अपराध की गंभीरता और तथ्य मालूम नहीं हैं कुछ केस इसके साथ पीएमएलए के हो सकते हैं कुछ आतंकवाद के हो सकते हैं इसलिए उन मामलों में संबंधित अदालतों को निर्णय लेना चाहिए क्योंकि मामले अदालतों के समक्ष हैं। धारा 124ए के अभियुक्त की जमानत अर्जी जल्दी निपटाई जानी चाहिए।
उन्होंने कहा कि कोई और आदेश देना ठीक नहीं होगा क्योंकि कोई भी अभियुक्त यहां कोर्ट के सामने नहीं है कोर्ट जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा है ऐसे में तीसरे पक्ष के कहने पर कानून पर रोक लगाने से गलत नजीर पेश होगी। कोर्ट पहले इस कानून को वैध ठहरा चुका है। याचिकाकर्ताओं ने मांगी कानून पर रोकश् लेकिन याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने मेहता से पूरी तरह असहमति जताते हुए कहा कि उन्हें ये स्वीकार नहीं है। उन्होंने कानून रद करने की मांग की।
सिब्बल ने कहा कि जब कोर्ट कह चुका है कि प्रथम दृष्टया कानून गलत है तो फिर कानून रद होना चाहिए। यह भी कहा कि अगर कानून में विधायी बदलाव होता है तो भी क्या होगा पुराना कानून तो जाएगा। सिब्बल की दलीलों पर पीठ के न्यायाधीश सूर्यकांत ने सिब्बल से कहा कि केंद्र सरकार का सुझाव है कि इस धारा में मामला वरिष्ठ अधिकारी की निगरानी में दर्ज होना चाहिए आप इस पर क्या चाहते हैं।
सिब्बल ने कहा उन्हें ये स्वीकार नहीं है इस कानून को रद ही होना चाहिए। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि आप ये कैसी हवा में दलीलें दे रहे हैं अभी मामले की मेरिट पर तो सुनवाई हो नहीं रही है कानून की समीक्षा तक अंतरिम आदेश पर विचार किया जा रहा है ऐसे में आप पीठ के सवाल का जवाब दीजिए। कोर्ट अंतरिम तौर पर एक व्यावहारिक हल पर विचार कर रहा है।
सिब्बल ने कहा कि अंतरिम तौर पर कानून पर रोक लगनी चाहिए। कोर्ट ने पूछा कि ऐसे कितने अभियुक्त हैं जो कि जेल में हैं और उन्होंने कोर्ट में याचिका दाखिल की है। मेहता ने कहा कि दो पत्रकारों की याचिका है लेकिन उन्होंने कानून को रद करने की मांग नहीं की है। कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद अंतरिम आदेश जारी किये।